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________________ .. onpur जम्बूकुमार ने दोनों को संबोधित करते हुए कहा-'आप जरा चिंतन करें कि विरोध कभी था नहीं। केवल इस कन्या को लेकर विरोध हुआ है।' रत्नचूल और मृगांक एक साथ एक स्वर में बोले-'हां, कुमार! इससे पूर्व हमारे संबंध बहुत मधुर रहे हैं।' जम्बूकुमार बोला-'विद्याधरपति रत्नचूल! मैं एक बात आपसे कहना चाहता हूं और वह बात मैंने महावीर से सीखी है।' 'कुमार! महावीर से आपने क्या सीखा है?' जम्बूकुमार-'जितनी आपदाएं हैं उन सब आपदाओं का मार्ग है इंद्रियों का असंयम। इंद्रियों को खुला छोड़ दो, कान, जीभ, स्पर्श-इनका मुक्त भोग करो, सब आपदाएं बिना बुलाए आ जाएंगी। निमंत्रण पत्र देने की जरूरत ही नहीं रहेगी।' आपदां कथितः पंथाः, इंद्रियाणामसंयमः। तज्जयः संपदां मार्गः, यदिष्टं तेन गम्यताम्।। 'विद्याधरपति! आप इंद्रियों को जीत लें। यह संपदा का मार्ग है। आपको पता है-महावीर बल का प्रयोग नहीं करते, जबर्दस्ती नहीं मनवाते। उन्होंने यह सचाई प्रस्तुत कर दी यह आपदा का मार्ग है और यह संपदा का मार्ग। इसके साथ हर व्यक्ति को स्वतंत्रता दे दी कि जो मार्ग अच्छा लगे, उसे चुन लो। अगर आपदा में जीना है तो मार्ग चुनो इंद्रियों की उच्छृखलता का। यदि संपदा में जीना है तो उनकी विजय का मार्ग चुनो।' 'विद्याधराधीश! मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप इंद्रियों की उच्छंखलता का मार्ग छोड़ें। एक कन्या के लिए आपने इतना बड़ा समारंभ कर दिया। इस पर जरा नियंत्रण करें। इस बात को मन से निकाल दें तो मैं समझता हूं कि सब कुछ ठीक हो जायेगा।' __जम्बूकुमार के इस हितोपदेश ने रत्नचूल के मन को प्रभावित किया। उसने अनुभव किया इंद्रिय के असंयम के कारण कितना बड़ा युद्ध हो गया। विजय भी नहीं मिली, कन्या भी नहीं मिली और अब मिलने की संभावना भी नहीं है। ___ व्यक्ति पहले नहीं सीखता। घटना से सीख लेता है। जो घटित हुआ, उसका मन पर गहरा असर हुआ। जम्बूकुमार की बात बहुत तथ्यपूर्ण और हितकर लगी। रत्नचूल बोला-'कुमार! मैं संकल्प करता हूं कि मैं विशालवती के लिए कोई चिंतन नहीं करूंगा। मैं इस कामना को छोड़ता हूं।' जम्बूकुमार ने इस शुभ संकल्प की वर्धापना करते हुए कहा-'बहुत अच्छा, साधुवाद।' जम्बूकुमार राजा मृगांक की ओर उन्मुख होते हुए बोला-'महाराज मृगांक! अब आपका भी कोई वैर-विरोध नहीं रहना चाहिए। यह बात मन से निकाल दें कि रत्नचूल आपका शत्रु है। वह आपका शत्रु नहीं है, पड़ोसी है, आपके पास रहने वाला है। आप दोनों में मित्रता होनी चाहिए। अगर आप दोनों में वैर-विरोध चलेगा तो बेचारे हजारों-लाखों नागरिक दुःखी बने रहेंगे, लड़ाइयां होती रहेंगी। जब लड़ाई होती है तब गाथा परम विजय की ७२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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