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________________ गाथा परम विजय की जहां समता है वहां कोई विषय ही नहीं बनता बातचीत करने का। जहां विषमता है, वहां वार्तालाप के अनेक विषय प्रस्तुत हो जाते हैं। व्यक्ति अपने साथ घटित प्रसंग की चर्चा करते हुए कहता है-'देखो, उसने मेरे साथ ऐसा किया। वह ऐसा काम कर रहा था। उसने वैसा किया। तुम नहीं जानते वह कैसा आदमी है।' बातों का अंत ही नहीं आता। अनादि और अनन्त होता है वार्तालाप। आज ही एक व्यक्ति ने पूछा-जब दो केवली मिलते हैं तो बात करते हैं? मैंने कहा-केवली क्या बात करेगा? कोई बात शेष नहीं है। बात है ही नहीं तो करेंगे क्या? प्रश्न पूछेगे तो उत्तर दे देंगे। बात का तो कोई अवकाश ही नहीं है। संघर्ष, झगड़ा, बहुत बातें, लड़ाइयां, कुतूहल-सब सराग अवस्था में पैदा होते हैं। ये सब राग-द्वेष के परिणाम हैं। यह चक्र बराबर चलता रहता है। ____ जम्बूकुमार वर्तमान में वीतराग नहीं हैं, सराग हैं इसीलिए युद्ध के मैदान में हैं, लड़ रहे हैं। युद्ध में पूरा विवेक कर रहे हैं पर आखिर लड़ाई तो लड़ाई है। प्राण से मार नहीं रहे हैं पर सता तो अवश्य रहे हैं। ___ माया-युद्ध-विद्या का युद्ध तीव्र होता चला गया। रत्नचूल ने घोर अंधकार कर दिया तो मृगांक ने प्रकाश कर दिया। आकाश साफ हो गया। कुछ क्षण बीते। देखते ही देखते एकदम घनघोर घटा उमड़ आई, काली कजरारी घटा उमड़ आई, चारों तरफ बादल गरजने लगे. बिजली कौंधने लगी। बड़ा भयंकर रूप बना। सबने देखा-अब तो बस युद्ध-स्थल खाली हो जायेगा, कोई टिक नहीं पायेगा। विद्याधर व्योमगति ने तत्काल प्रतिकूल पवन का प्रयोग किया और आकाश फिर साफ हो गया। विद्या के युद्ध में एक क्षण में तो चीज बनती है और एक क्षण में नष्ट हो जाती है। कभी आंधी, कभी धूल-अनेक प्रकार के विद्या अस्त्रों का प्रयोग चला। लम्बे समय तक चलता रहा। रत्नचूल ने दावानल का प्रयोग किया, आग लगा दी, व्योमगति ने मेघ बरसा दिया। कृत्रिम मेघ से आज भी वर्षा की जाती है। विद्याधर तो कृत्रिम मेघ बरसाते ही थे। ___जम्बूकुमार ने सोचा-यह रत्नचूल ऐसे मानने वाला नहीं है। शक्तिशाली विद्याधर है, बहुत विद्याएं हैं। लम्बे समय चलता रहेगा युद्ध। लंबे समय क्यों चलायें? जम्बूकुमार ने रत्नचूल के मुकुट को लक्ष्य कर बाण का प्रयोग किया। जम्बूकुमार इस बात का ध्यान रखते थे कि किसी की हत्या न हो जाए। बाण का ऐसा प्रयोग किया कि रत्नचूल का मुकुट जर्जर होकर नीचे गिर गया। इस आकस्मिक प्रहार से रत्नचूल हतप्रभ हो गया। वह स्थिर और संतुलित नहीं रह सका, मुकुट के साथ वह भी नीचे गिर पड़ा। जैसे ही रत्नचूल नीचे गिरा, मृगांक और व्योमगति का मुख हर्ष से विकस्वर हो गया। ___ राजा मृगांक ने इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए सैनिकों से पूछा-'अरे! यह नीचे कौन आकर गिरा है?' सैनिक बोले-'स्वामी! जिसको आप गिराना चाहते थे, वह पुनः गिर गया है।' 'अरे! कौन?' 'वही, जो आपका शत्रु है।' ५७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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