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________________ गाथा परम विजय की नहीं, कोई जीतता नहीं। लड़ाई चलती रहती है। सनत्कुमार इन्द्र को पता चलता है, वह आता है और कहता है-मा सक्का मा इसाणा-शक्र और ईशान युद्ध को बंद करो। जब दोनों से ऊपर का वह देव आता है, उसकी बात माननी पड़ती है तब लड़ाई बंद होती है। इंद्र को भी सेना की व्यूहरचना करनी पड़ती है। हो सकता है इस सुन्दर व्यूहरचना को देखने के लिए इन्द्र भी आ गया हो। ____ एक सैनिक ने कहा–'छोड़ो इस बात को। कौन इंद्र यहां आएगा? कोई विद्याधर है, रत्नचूल का सहयोग करने के लिए यहां आया होगा? अब रत्नचूल के पास जा रहा है।' किसी ने कहा-'कोई धूर्त आदमी तो नहीं आ गया है? अपने को ठगने, धोखा देने के लिए दूसरे वेश में तो नहीं आ गया है?' अथ कश्चिच्छलान्वेषी, धत्तॊ वेषधरो नरः। वावदूकश्च वाचालः, पाटवाच्चित्तरंजकः।। नाना प्रकार के विकल्प/कल्पनाएं सैनिकों के मन में चल रही हैं पर आगे कोई नहीं बढ़ा, किसी ने रास्ता नहीं रोका, किसी ने सामने आकर यह नहीं पूछा-तुम कहां जा रहे हो? जम्बूकुमार आगे बढ़ता गया। सेना की छावनी को पार कर राजा रत्नचूल के मुख्य कक्ष के परिपार्श्व में पहुंच गया। क्या यह संभव है कि सेना को चीर कर अकेला युवक ऐसे चला जाए? संभव नहीं है किन्तु असंभव भी नहीं है। यह एक संकल्प का प्रयोग है। जिसका संकल्प प्रबल होता है, वह ऐसा जादुई काम कर लेता है कि दूसरा आदमी कल्पना नहीं कर सकता। संकल्प का बल बहुत बड़ा होता है। संकल्प के साथ ही सम्मोहन पैदा होता है। स्टालिन अपने समय का कठोर शासक था। एक व्यक्ति ने कुछ करतब दिखाए। स्टालिन को पता चला कि यह व्यक्ति ऐसा है, जहां चाहे जा सकता है। उसे स्टालिन के सामने लाया गया। स्टालिन ने कहा-'तुम्हारा चमत्कार तब मानूं जब तुम मेरे पास पहुंच जाओ।' युवक ने कहा-'पहुंच सकता हूं।' स्टालिन ने सुरक्षा की कठोर व्यवस्था की, पग-पग पर सैनिकों का पहरा लगा दिया। यह निर्देश दे दिया कोई भी आदमी भीतर न आने पाए। किन्तु जिस व्यक्ति को पहुंचना था, वह स्टालिन के पास पहुंच गया। स्टालिन ने पूछा-'यह कैसे हुआ? यह हो नहीं सकता।' उसने कहा-'यह आप खोज करें कि कैसे हुआ। मैं तो आ गया।' संकल्प इतना मजबूत था कि सबको यह लगा-हमारा अधिकारी भीतर जा रहा है, सब उसे दंडवत् नमस्कार कर रहे हैं। कोई रोक नहीं पा रहा है। ____ संकल्प का बल बहुत बड़ा होता है। ज्ञातासूत्र में लिखा है-णिच्छियववसियस्स एत्थ किं दुक्कर करणयाए जिसका निश्चय अटल होता है, जिसका व्यवसाय अटल होता है, उसके लिए ऐसा क्या है, जो दुष्कर हो, कठिन हो। उसके लिए दुष्कर कुछ भी नहीं है। निश्चय अटल है तो आदमी जो चाहे कर सकता है।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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