SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2) / 1. h .. गाथा परम विजय की 'प्रभव! मैंने यह सत्य इन सबको समझाया और इन्होंने यह सत्य समझ लिया कि वास्तव में कामनाएं कामना की पूर्ति से कभी शांत नहीं होतीं। कामना की विरति करो, कामना शांत हो जायेगी।' जो लोग बहुत ज्यादा वासना से पीड़ित होते हैं, उनकी कामना कभी शांत नहीं होती। यदि उनकी चेतना जगा दो तो एकदम परिवर्तन आ जायेगा और ऐसा लगेगा कि जैसे कोई नया जीवन मिल गया है। कल एक भाई आया, बोला-'ब्रह्मचर्य के बारे में अच्छा साहित्य आना चाहिए।' मैंने कहा-'क्यों?' वह बोला-'आजकल जो कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्र हैं वे अज्ञानवश इतनी गलत दिशा में चले जाते हैं कि उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। वे जीवन के नियमों को नहीं जानते इसलिए बहुत आवश्यक हो गया है कि ब्रह्मचर्य के बारे में उनको बताया जाए।' जो ब्रह्मचर्य के बारे में नहीं जानता, वह शायद अपने जीवन की शक्ति के साथ खिलवाड़ करता है। ब्रह्मचर्य के बारे में जितना बल भगवान महावीर ने दिया उतना शायद उस समय के किसी धर्माचार्य ने नहीं दिया। महावीर ने बहुत जागरूक किया था ब्रह्मचर्य के बारे में। कुछ और भी विशिष्ट लोग हुए हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य के अर्थ को समझाया था। 'प्रभव! जीवनी शक्ति की सुरक्षा के लिए ब्रह्मचर्य एक दिव्य औषधि है। वह शक्ति का स्रोत है। मैंने ब्रह्मचर्य का यह रहस्य समझाया है।' ___ 'प्रभव! इन सब रहस्यों को समझाने से इनकी चेतना प्रबुद्ध हो गई।' जब चेतना बदलती है, सारा दृश्य बदल जाता है। हम जिसकी कल्पना नहीं कर सकते वैसा हो जाता है। ____ एक कहानी बहुत मार्मिक है। एक संन्यासी का नाम बहुत प्रसिद्ध था। त्यागी, वैरागी, ओजस्वी और शक्तिशाली। लोगों में उनके प्रति आकर्षण और श्रद्धा का भाव था। महारानी ने संन्यासी की यशोगाथाएं सुनीं। उसका मन दर्शन के लिए मचल उठा। राजा संन्यासी के पास स्वयं पहुंचा। उसने प्रार्थना की'महाराज! मेरी महारानी बाहर आ नहीं सकतीं। आप अंतःपुर में पधारें और महारानी को दर्शन दें।' संन्यासी बोला-राजन्! मैं नहीं जा सकता।' 'क्यों महाराज?' 'राजन्! मुझे सोने की गंध आती है। महारानी के सब अलंकरण, आभूषण सोने के हैं और मुझे सोने की बदबू आती है। इसलिए मैं नहीं जा सकता।' 'महाराज! कैसी भोलेपन की बात करते हैं। सोने में तो सुगंध होती है। सोना मिल जाए तो दुनिया निहाल हो जाए। सोने के प्रति कितना आकर्षण है। कितनी चाह है सोने की! आप जो कह रहे हैं वह सही नहीं है। महाराज! सोने में सुगंध ही होती है, दुर्गन्ध तो होती ही नहीं है।' 'राजन्! मुझे दुर्गन्ध आती है।' ३४१
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy