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________________ JASNEE धन-ये सब कुछ दिखाई देते हैं। जम्बूकुमार को ये दिखाई नहीं दे रहे हैं। उसको दिखाई दे रही है आत्मा, मोक्ष, आध्यात्मिक , सुख। दोनों का दर्शन भिन्न, दृष्टिकोण भिन्न और चिन्तन भिन्न। फिर भी वार्तालाप और संवाद जरूरी है। ___ जम्बूकुमार ने प्रभव को मधुबिन्दु का दृष्टान्त बताया और समझाया-देखो, रस कितना अल्प है और खतरा साथ में कितना प्रबल है। प्रभव इस विषय में मौन हो गया, उसने कहा-'आपका यह कथन उपयुक्त है। बात कुछ समझ में आई है पर अभी भी मेरे तर्क समाप्त नहीं हुए हैं। 'प्रभव! तुम अपने तर्क प्रस्तुत करो। मैं उन्हें समाहित करूंगा।' 'कुमार! एक बात मेरे समझ में नहीं आ रही है। वह तुम्हारे लिए भी चिन्तन का विषय है। तुम ध्यान । गाथा परम विजय की दो-'हमारा साहित्य क्या कह रहा है? हमारी भारतीय संस्कृति क्या कहती है?' प्रभव कहै जम्बूकुमार नै, माता-पिता दिक सह कोई। त्यांनै छोड़ चारित्त लिए, त्यांरी आछी गति किम होई।। 'कुमार! तुम्हारे माता-पिता जीवित हैं। माता-पिता को छोड़कर तुम साधु बनना चाहते हो। क्या तुम्हारी अच्छी गति होगी?' 'प्रभव! क्यों नहीं होगी?' 'कुमार! माता-पिता का ऋण होता है। कितना महत्त्वपूर्ण सूक्त है-मातृ देवो भव, पितृ देवो भवमाता-पिता की पूजा करो, उनका ऋण चुकाओ, फिर तुम जो चाहो, वह करना।' 'कुमार! अभी तो तुम्हारे सिर पर ऋण है। माता ने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया है। पिता ने तुम्हें संरक्षण दिया है। क्या उन्होंने इतना श्रम इसलिए किया था कि तुम थोड़े बड़े होते ही उन्हें छोड़कर चले जाओ? कैसे उचित है ऋण चुकाए बिना दीक्षित होना? पहले कर्जा उतारो, उऋण बनो, फिर साधुपन की बात करो।' 'कुमार! तुम्हारी यह बात समझ में आ गई कि साधु बनना बहुत अच्छा है, वैराग्य बहुत अच्छा है पर कम से कम जो पहले करणीय है वह तो करो। उसके बाद साधु बनने की बात करना। मैं यह मानता हूं साता-पिता का ऋण चुकाए बिना अच्छी गति नहीं होती।' २२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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