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________________ - () (6h (h . गाथा परम विजय की सबका विकास समान नहीं होता और सब दिशाओं में समान नहीं होता। विकास की साधन-सामग्री भी सबको समान नहीं मिलती। यह विविधता प्रकृति है, जगत् का स्वभाव है। एक व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास अधिक होता है तो दूसरे व्यक्ति का मस्तिष्क बहुत कम विकसित होता है। एक व्यक्ति में सोचने की, समझने की शक्ति बहुत ज्यादा होती है और दूसरा समझाने पर भी नहीं समझ पाता। यह अंतर सदा रहा है। यह अंतर अपनी आंतरिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। आंतरिक क्षमता किसकी कितनी है? जितनी क्षमता है, उतनी प्रगट होती है, शेष अप्रगट रह जाती है। इसलिए हमें हर व्यक्ति की आंतरिक योग्यता और उसके आधार पर होने वाले विकास को देखकर ही निर्णय करना चाहिए। ____ हम लोग स्थूल बात को देखते हैं, शरीर को देखते हैं, अवस्था को देखते हैं, बाहरी साधनों को देखते हैं किन्तु भीतर को नहीं जानते। बाहर में कौन बड़ा है और भीतर में कौन? बहुत ऐसे लोग हैं जो ६०-७० वर्ष के हैं किन्तु उनका व्यवहार बचकानापन जैसा होता है। कुछ अवस्था में १० वर्ष के हैं किन्तु उनका व्यवहार परिपक्व होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई अनुभवी आदमी व्यवहार और बातचीत कर रहा है। इस आंतरिक योग्यता को देखना सहज नहीं है। __ वे चक्षु बहुत दुर्लभ हैं, जिनसे हम भीतर को देख सकें। फोटोग्राफर फोटो खींचते हैं, रंगरूप का चित्र आता है। आज ऐसे यंत्र भी बन गये, शरीर के भीतर के हर अवयव का फोटो ले लेते हैं। व्यक्ति एक्स-रे के सामने जायेगा। एक्स-रे बाहर का फोटो नहीं लेगा, वह भीतर का फोटो ले लेगा। दो दृष्टियां हैं-एक कैमरे की दृष्टि, एक एक्स-रे की दृष्टि। माइक्रोस्कोप यंत्र का विकास इसलिए हुआ कि सूक्ष्म को देखा जा सके। एक ऐसी दृष्टि, जो बहुत दूर तक देख सके। टेलीस्कोप यंत्र के द्वारा हजारों-हजारों प्रकाश वर्ष की दूरी को भी देख सकते हैं। यह हमारी दृष्टि का विकास है। ____ जम्बूकुमार के सामने सूक्ष्म और दूरवर्ती दोनों तथ्य स्पष्ट हैं। प्रभव अभी स्थूल को देख रहा है, आस-पास को देख रहा है। जब कोई व्यक्ति आस-पास को देखता है तब मकान, माता-पिता, परिवार, ३२१
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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