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________________ आजकल छोटे-छोटे बच्चों की आंतें खराब हो जाती हैं, दांत खराब हो जाते हैं। माता-पिता आए, - पांच-सात वर्ष का बच्चा है। आंत खराब हो गई इसलिए ऑपरेशन करवाया है।' हमने आश्चर्य से I—'छोटे बच्चे की आंत खराब कैसे हुई ?' 'महाराज! यह टॉफी ज्यादा खाता है इसलिए आंतें खराब हो गईं। डॉ. कहते हैं - आंतें भी खराब हैं, भी खराब हैं।' अब बच्चे को तो परिणाम का पता नहीं क्योंकि उसको टॉफी खाने में मजा आता है, । मिलता है और बड़ा अच्छा लगता है। आजकल इंद्रिय सुख पर ध्यान ज्यादा चला गया। छोटे बच्चे बात छोड़ दें, बड़े-बड़े समझदार लोग भी आइसक्रीम, बर्फ ज्यादा खाएंगे फिर चाहे श्वास की बीमारी दूसरी कोई बीमारी हो जाए। इंद्रिय चेतना को समझना बहुत जरूरी है। इंद्रिय को तृप्ति कितनी मात्रा में ननी चाहिए, यह विवेक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। जम्बूकुमार ने कहा-' प्रभव! तुम काम भोग में रस जो बात कर रहे हो, उसे मैं अस्वीकार नहीं ना पर इस सचाई को तुम समझ लोगे तो तुम्हारा दृष्टिकोण बदल जाएगा। इस सचाई को समझाने के तुम्हें एक कहानी भी सुनाना चाहता हूं।' ए सुख थोड़ा नै दुःख घणा, यांमै रीझ करी कुण खंत रै प्रभवा । ए काम भोग न ऊसरै, सांभल एक दृष्टंत रै प्रभवा ! ‘कुमार! मैं कहानियां सुनने और सुनाने का शौकीन रहा हूं। कहानी से गहन बात भी सरसता से समझ आ जाती है।' छोटे बच्चे नहीं, विद्वान लोग भी कहानी में बड़ा रस लेते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी बार अक्षय तृतीया के कार्यक्रम में आये थे। पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में उन्होंने अपने वक्तव्य का प्रारंभ ों शब्दों में किया-'मैं महाप्रज्ञ साहित्य का प्रेमी पाठक हूं। उनकी कहानी के द्वारा ही आज अपनी बात कर रहा हूं।' राजनीतिज्ञ, बड़े-बड़े दार्शनिक सब लोग कहानी को काम में लेते हैं। ‘प्रभव! एक आदमी जा रहा था। बहुत लोग साथ में थे। बहुत घना जंगल आया । रास्ता संकरा था। पथ नहीं था। लोग पगडंडियों पर चलते थे। एक आदमी ने जो पगडंडी ली, वह विपरीत दिशा में मुड़ वह अपने साथियों से बिछुड़ गया, अकेला रह गया। कुछ आगे चला तो देखा - एक जंगली हाथी ने आ रहा था। वह डर गया। सोचा - क्या करूं? सामने एक बड़ा पेड़ है। उस पेड़ पर चढ़ जाऊं।' बहुत वर्ष पहले की बात है। साध्वी मोहनांजी (राजगढ़) असम की यात्रा कर रही थीं। वहां घोर ल में विशालकाय जंगली हाथी सामने आ गया। साध्वीजी वहीं खड़ी हो गईं। इधर साध्वीजी खड़ी हैं। उधर हाथी खड़ा है। आमने-सामने दोनों खड़े हैं। दोनों मौन । साध्वी मोहनांजी इस विकट स्थिति में न्य पुरुष जग जाए' इस मंत्र समन्वित गीत ।। गीत की स्वर लहरियों ने पूरे वातावरण में पनों ने विशालकाय हाथी के अवचेतन मन को प्रभावित किया। ८ पदों को गुनगुनाने लगीं। यह गीत अभय का मंत्र बन अभय का संचार कर दिया। सस्वर गीत के शक्तिशाली साध्वीजी मंत्रपूरित गीत के गायन में तन्मय बनी रहीं । न वह हाथी एक कदम आगे बढ़ा, न साध्वीजी क़ कदम पीछे रखा। कुछ क्षण बीते। हाथी कुछ पीछे हटा, दूसरी दिशा में मुड़ गया। Im गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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