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________________ कहा जाता है-बंधु के बिना संसार सूना है पर भाइयों को भी धन के लिए लड़ते देखा गया है। धन के लिए मां और बेटों को लड़ते देखा है । यह कोई सुनी-सुनाई कहानी नहीं है। लंबे समय तक मां और बेटों संपत्ति के लिए मुकदमा चला है। पिता और पुत्र को भी धन के लिए लड़ते देखा है। पति-पत्नी को भी धन के लिए लड़ते देखा है, कोर्ट में बरसों तक मुकदमे चले हैं। हम सोचें - कौन प्रिय है? सबसे ज्यादा प्रिय है धन। धन मिल जाए तो सब प्रिय हैं और धन इधर-उधर हो जाए तो प्रिय भी एक मिनट में अप्रिय बन जाते हैं। एक बड़ी विचित्र संज्ञा मनुष्य में बन गई कि वह सब कुछ धन को ही मान रहा है। सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयंति - सब गुण सोने और धन में है। 'बहिनो! मैंने तुम्हें धन के परिणाम बताए। अब यह प्रत्यक्ष है। यह प्रभव राजा का बेटा है, राजकुमार है पर आज चोर बना हुआ है। दिन-रात चोरी का मानस रहता है। केवल धन ही धन दिखाई देता है। यह धन की जो लीला है, धन का जो आकर्षण है वह पतन की ओर ले जाता है। जब तक आत्मा के प्रति आकर्षण पैदा नहीं होगा तब तक यह आकर्षण छूटेगा नहीं।' उत्तराध्ययन सूत्र का एक बहुत सुंदर प्रसंग है । भृगु पुरोहित का पूरा परिवार दीक्षित हो रहा था और सारी सम्पत्ति को छोड़ रहा था। वह राजमान्य पुरोहित था। राजा के मन में लोभ आया- जब पूरा परिवार दीक्षित हो रहा है तब यह सम्पत्ति राजा की होगी । उसने अधिकारियों को आदेश दिया - राजपुरोहित का सारा धन महल में ले आओ। महारानी कमलावती को पता चला। उसने कहा-'महाराज ! क्या कर रहे हैं? धन का इतना लोभ क्या उपयुक्त है? " वंतासि पुरिसो रायं, न सो होइ पसंसियो । माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ।। ‘राजन्! यह धन आपका ही तो दिया हुआ है। वमन खाने वाले पुरुष की प्रशंसा नहीं होती। आप ब्राह्मण द्वारा परित्यक्त धन को लेना चाहते हैं ! इसको पुनः लेना एक प्रकार से वमन को पीना है। जिस धन को आपने दिया, ब्राह्मण ने जिसे वान्त कर दिया, आप फिर उसको खाना चाहते हैं, यह अच्छा नहीं है।' ताणं । किंचि || एक्को हु धम्मो नरदेव न विज्जए अन्नमिहेह महारानी ने ऐसा मर्मस्पर्शी वाक्य कहा कि राजा की आंखें खुल गईं। कमलावती बोली- राजन् ! आप क्या कर रहे हैं? वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते - यह धन आपको त्राण नहीं देगा। एक धर्म ही ऐसा तत्त्व है, जो आपको त्राण देगा। दूसरा कोई तत्त्व ऐसा नहीं है जो शरण दे, त्राण दे।' कमलावती ने इतनी साफ-साफ बात कही कि राजा एक प्रकार से लज्जित हो गया। उसने तत्काल आदेश दिया-'पुरोहित के घर से धन न लाया जाए।' जम्बूकुमार ने कहा- 'बहिनो! तुम देखो! आज सारा संसार धन के पीछे दौड़ रहा है। जहां व्यक्ति धर्म को भुलाकर धन के पीछे दौड़ता है वहां अपराध होते हैं, चोरी-डकैती और मार-काट का प्रश्न आता है।' दो-दिन पहले एक परिवार आया। हमने पूछा- क्या हुआ ? परिवार के लोगों ने बताया- जवान लड़का दुकान में बैठा था। सांझ के समय कुछ अपराधी आये और हत्या कर दी। जो कुछ धन था, उसे ले गये। २६८ m गाथा परम विजय की (M
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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