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________________ (ड) (6 A - गाथा परम विजय की चांदी के गट्ठर बांध लो। पांच सौ साथी तत्काल इस काम में लग गए। उन्होंने पांच सौ गांठें तैयार कर लीं। साथियों ने पूछा- सरदार ! अब क्या आदेश है ?' मैंने उन्हें आदेश दिया- 'साथियो ! अब गट्ठर उठाओ और चलो। अपना काम हो गया।' 'कुमार ! उसी क्षण आपको पता लग गया और आपने स्तंभनी विद्या का प्रयोग कर दिया। हमारे जितने साथी हैं। सबके पैर स्तब्ध हो गये। जो जहां जिस मुद्रा में खड़ा था वह वहां उसी मुद्रा में जड़ीभूत हो गया। पैर जमीन से चिपक गये, हाथ भी जहां थे, वहीं चिपक गये। अब मेरे साथी खंभे की तरह खड़े हैं। न हिलते हैं न डुलते हैं। न हाथ हिला सकते हैं, न पैर उठा सकते हैं। मैंने सोचा-यह क्या हुआ? मैंने अवस्वापिनी का प्रयोग कर दिया, सब सो गए। किसने किया है विद्या का प्रयोग? मैंने थोड़ा गहराई से ध्यान दिया, सोपान पंक्ति से ऊपर चढ़ा तो मुझे कुलबुलाहट सुनाई दी । मैं अवाक् रह गया-अरे! यहां कोई बोल रहा है। मेरे आश्चर्य का पार नहीं रहा। मैंने अवस्वापिनी विद्या का प्रयोग कर दिया फिर भी इस घर में कोई जाग रहा है, कोई बोल रहा है, यह कैसे हुआ ? मैं ऊपर आया। आपके कक्ष के बाहर रुका, मैंने देखा-भीतर तो बात हो रही है और एक नहीं, अनेक लोग बोल रहे हैं।' 'कुमार ! मेरी विद्या कभी व्यर्थ नहीं जाती । नीचे सब लोग सो गये, ऊपर महल में भव्य कक्ष में बैठे लोग क्यों नहीं सोए? विद्या की विफलता पर निराशा और आश्चर्य - दोनों हुए। मैंने तुम्हें देखा और देखता रह गया। मुझे विश्वास हो गया कि यह सब कुमार की करामात है । ' 'कुमार! तुम बहुत शक्तिशाली हो, तुम्हारे भीतर इतनी शक्ति है कि मेरी विद्या का तुम्हारे पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने अनुभव किया कि प्रायः व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन पर विद्या का असर होता है किन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन पर विद्या का असर नहीं होता। जिनका आभामंडल बहुत शक्तिशाली होता है, जिनका तैजस शरीर बहुत शक्तिशाली होता है उन पर कोई असर नहीं हो सकता। शक्तिसंपन्न मनुष्य पर न नागपाश का असर होता, न अवस्वापिनी विद्या का प्रभाव होता और न किसी अन्य मारक, उच्चाटन मंत्र का असर होता । इन सबका असर उन पर होता है जो कमजोर मन वाले होते हैं, जिनका शरीर कमजोर होता है।' कमजोर शरीर का मतलब यह हाड़-मांस का शरीर नहीं है। हमारा तैजस शरीर कमजोर हो तब असर २६५
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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