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________________ बैठा रहेगा तो यश कहां रहेगा ? हो सकता है - यश भी चला जाए और मृत्यु भी हो जाए। लड़ेगा तो जीते या न जीते, बचे या न बचे, पर कम से कम यश तो उसका सुरक्षित रहेगा। ' क्रमोऽयं क्षात्रधर्मस्य, सम्मुखत्वं यदाहवे । प्राणात्ययस्तत्र, नान्यथा जीवनं वरम् ।। युद्ध का भी एक सिद्धांत रहा है, कुछ धारणाएं रही हैं। गीता को पढ़ने वाला जानता है-वासुदेव कृष्ण ने युद्ध के लिए कितना प्रेरित किया था पांडवों को। उस युग में युद्ध पर कितना बल दिया गया, कितना लिखा गया। आज शांति के प्रयत्न बहुत चल रहे हैं। प्राचीनकाल में शांति शायद सहज होती थी, युद्ध के प्रयत्न बहुत चलते थे। इसीलिए बार-बार कहा गया जिते च लभ्यते लक्ष्मी, मृते चापि सुरांगना । क्षणभंगुरको देह, का चिन्ता मरणे रणे ।। युद्ध में मरने की चिन्ता क्या है? यदि विजयी बने तो लक्ष्मी हाथ आ जाएगी। यदि मर गए तो सुरांगना माला लिए तैयार रहेगी। एक मान्यता रही - युद्ध में मरता है, वह स्वर्ग में जाता है। इस शरीर का क्या भरोसा? यह क्षणभंगुर है । शरीर की चिंता क्या है ? युद्ध को बहुत प्रोत्साहन दिया गया। वीरत्व को, पराक्रम को बहुत महत्त्व दिया गया। विद्याधर बोला–‘राजन्! मृगांक लड़ेगा और अपने यश की सुरक्षा के लिए लड़ेगा। जो भग्नाश हो जाते हैं, जिनकी आशा टूट जाती है, वे कभी यशस्वी नहीं रह सकते, कभी सम्मान की सुरक्षा नहीं कर सकते। इसलिए मैंने अपनी बात आपको कह दी, अब जल्दी करें। मैं ज्यादा रुक नहीं सकता। मुझे जल्दी पहुंचना है। आप आज्ञा दें, मैं जा रहा हूं।' विद्याधर ने आज्ञा मांग ली, जाने की तैयारी कर ली। कोई नहीं बोला। श्रेणिक मौन, सारी सभा मौन । किसी ने मौन नहीं खोला। चारों ओर मौन का वातावरण था । जम्बूकुमार राज्यसभा के सदस्य नहीं थे। पूरे युवक भी नहीं थे, नव युवा थे । उन्होंने सोचा - विद्याधर इतनी भावना लेकर आया है, खाली जा रहा है। सम्राट् श्रेणिक ने कुछ भी नहीं कहा। यह अच्छा नहीं है। तत्काल जम्बूकुमार ने मौन खोला तिष्ठ तिष्ठ क्षणं यावत्, भवेत् सज्जो नराधिपः । श्रेणिकोऽयं महासत्त्वो, निर्जिताखिलशात्रवः || 'विद्याधर! इतनी क्या जल्दी है? जरा ठहरो । महाराज श्रेणिक अपनी सेना को तैयार कर साथ चलेगा। इतनी देर तो तुम ठहरो। तुम जानते नहीं हो - सम्राट् श्रेणिक कितना शक्तिशाली है। इसने कितने शत्रुओं को जीता है! सम्राट् श्रेणिक जाएगा तो रत्नचूल अपने आप भाग जाएगा। जरा ठहरो।' विद्याधर बोला-'बच्चे ! तुम क्या कहते हो ? अभी तुम छोटे बच्चे हो । लड़ाई तो कल होने वाली है। सम्राट् श्रेणिक यहां से कब पहुंचेंगे? सौ योजन की दूरी है। पहुंचने में एक मास लग जाएगा तब तक तो सारा कार्य संपन्न हो जाएगा। कल ही युद्ध है, कल ही कुछ होने वाला है। सम्राट् कब पहुंचेंगे? ३० m गाथा परम विजय की ww
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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