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________________ गाथा परम विजय की सत्य क्या है और झूठ क्या है? बड़ी समस्या है निर्णय करना। एक आदमी एक बात को सत्य मानता है, दूसरा उसी को झूठ मान लेता है। कौन सच्चा है और कौन झूठा? इसका निर्णय कौन करे? आखिर निर्णायक कौन? क्या निर्णय करने वाला भी ऐसा व्यक्ति है, जो सत्य बात को ही पुरस्कृत करे। उसमें भी तो पक्षपात है, राग-द्वेष है। आखिर तुला कौन-सी है, जिससे तौला जा सके? मानदण्ड कौन-सा है, जिससे मापा जा सके? कौन-सा धर्मकांटा है जो ठीक-ठीक तौल बता सके? यह बड़ा कठिन काम है। मालिन से सेठ ने कहा-'कल तुमने जो फल दिये थे वे वजन में कम थे। तुमने कम कैसे दिये?' मालिन बोली-'सेठजी! मैंने तो तौलकर दिये थे।' 'तो कम कैसे तौले?' 'सेठजी! कल यहीं से एक किलो अनाज ले गई थी। तराजू के एक पल्ले पर एक किलो अनाज रखा और तराजू के दूसरे पल्ले पर एक किलो फल तौल दिये।' सेठ मौन हो गया। उसने ही तो कम तौलकर अनाज दिया था, वह अब क्या बोले? जो स्वयं तौलने वाला है, वह भी सच्चा नहीं है तो फिर तराजू क्या करेगी? तराजू का काम तो वही है किन्तु तौलने वाला ईमानदार नहीं है तो फिर तुला तुला नहीं रहती। जम्बूकुमार ने कहा-'जयंतश्री! तुमने प्रश्न उठाया सत्य का। मैं किस कहानी को सच मानूं, किसको झूठ मानूं? यदि मैं यह कहूं कि मेरी पत्नियों ने जो कहानियां कहीं, वे सच्ची हैं तो मेरी कहानियां झूठी हो जायेंगी। यदि मैं यह कहूं कि मैंने जो कहानियां कहीं, वे सच्ची हैं तो तुम आठों ने जो कहानियां कहीं वे झूठी हो जाएंगी। मेरा ज्ञान ऐसा नहीं है कि मैं एक को सत्य कहूं और एक को मिथ्या कहूं। जयंतश्री! तुमने यह झंझट ही क्यों खड़ा किया?' _ 'प्रिये! दुनिया में कंकड़ भी है और अनाज भी है। अनाज में कंकड़ मिला हुआ आता है, खाद्य पदार्थों में भी कंकड़ आ जाता है। मिलावट सर्वत्र है। आखिर परीक्षा करनी होती है।' २७२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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