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________________ ___ राजा भोज और कालिदास की विश्रुत घटना है। राजा भोज ने कालिदास से कहा-'तुम मुझे मर्सिया (इ)( सुनाओ।' h गाथा परम विजय की मरने के बाद जो कविता बनाई जाती है वह मर्सिया कहलाता है। कालिदास ने कहा-'आप जीवित सामने बैठे हैं। मैं मर्सिया कैसे सुनाऊं?' राजा भोज ने कहा-'मेरे मरने के बाद तुम क्या कहोगे, अभी मैं वह सुनना चाहता हूं।' कालिदास बोला-'यह कभी संभव नहीं है।' ___ बात इतनी ठन गयी कि राजा आवेश में आ गया। उसने कालिदास को देशनिकाला दे दिया। दो-चार दिन में आवेश ठंडा हुआ, राजा ने सोचा अच्छा नहीं हुआ। इतने बड़े कवि को मैंने अपने राज्य से निकाल दिया। राजा ने अधिकारियों से कहा-'जाओ, कालिदास की खोज करो।' अधिकारी गये, पर पता नहीं चला। राजा स्वयं वेश बदलकर खोजने के लिए निकला। चलते-चलते बहुत दूर चला गया। एक सघन वन में कालिदास मिल गया। राजा को कालिदास ने नहीं पहचाना। राजा ने कालिदास को पहचान लिया। दोनों में बातचीत शुरू हुई। कालिदास ने पूछा-'कहां से आये हो?' 'धारा नगरी से आया हूं।' 'अरे! धारा नगरी से आये हो, वहां के क्या समाचार हैं?' 'समाचार क्या पूछते हो? राजा भोज तो मर गए।' ___ क्या भोज मर गए?....अत्यंत दुःखी स्वर में तत्काल बोल पड़ा-'भोज राजा के दिवंगत होने पर धारा नगरी निराधार हो गई है। सरस्वती का आलंबन भी समाप्त हो गया है। सारे पण्डित खण्डित हो गये हैं।' अद्य धारा निराधारा, निरालंबा सरस्वती। पण्डिताः खण्डिताः सर्वे, भोजराजे दिवंगते।। ___ यह सुनते ही राजा भोज मुस्कराया। कालिदास ने देखा-बात क्या है? कौन मुस्करा रहा है? ध्यान से देखा तो पहचान गया ये तो स्वयं राजा भोज हैं। कालिदास तत्काल संभल गया, बोला-'नहीं-नहीं, मैंने श्लोक गलत कह दिया। धारा नगरी सदा आधार वाली है और सरस्वती आलंबन वाली है। पण्डित सब मण्डित हो रहे हैं क्योंकि राजा भोज इस धरा पर सुशोभित हो रहे हैं।' अद्य धारा सदाधारा, सदालंबा सरस्वती। पण्डिताः मण्डिताः सर्वे, भोजराजे भुवंगते।। ___ प्रधान सुबुद्धि ने ज्ञातिजनों से कहा-'आप हमारे स्वजन हैं, पर्व मित्र हैं। आप इस समय मुझे अवश्य सहयोग दें।' ज्ञातिजनों ने कहा-'आप जो कह रहे हैं, वह तो ठीक है परन्तु आप हमें खतरे में क्यों डाल रहे हैं? अगर हम घर में रखेंगे तो हमारी स्थिति क्या होगी? राजा अपने आदमी भेजेगा, पता लगायेगा। यदि पता लग गया तो क्या होगा?'
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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