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________________ पर चढ़ा दो, देश निकाला दे दो। इस प्रकार की घटनाएं होती थीं। राजा की इस निरंकुश मनोवृत्ति ने ही प्रतिक्रिया को जन्म दिया, राजशाही के प्रति घृणा के बीज बोए। उसे समाप्त करने के प्रयत्न तीव्र बने और . वे सफल भी हुए। _ विश्वस्त सूत्रों से मंत्री को पता लग गया-राजा कुपित हो गया है। उसने सोचा-यह अच्छा नहीं हुआ। कहीं ऐसा न हो कि राजा मरवा डाले। मैं अब क्या करूं? घर पर आया। बहुत उदास। पत्नी के पास बैठा, वह नित्य मित्र थी। पत्नी ने पूछा-'पतिदेव! आज आप उदास क्यों हैं?' 'प्रिये! आज एक बड़ी समस्या आ गई है।' 'स्वामी! क्या समस्या है?' 'प्रिये! राजा कुपित हो गया है।' 'स्वामी! अब क्या करना चाहिए? 'प्रिये! तुम ही कोई मार्ग बताओ। 'स्वामी! मैं क्या कर सकती हूं?' 'प्रिये! मेरी इच्छा यह है कि मुझे कहीं घर में छिपा लो। अपना घर बहुत बड़ा है। कहीं एक ऐसे गुप्त स्थान में मुझे रख लो। किसी को मत बताना कि मैं कहां हूं। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। कुछ दिनों में स्थिति अपने आप शांत हो जाएगी।' 'स्वामी! यह तो नहीं हो सकता। गाथा 'यह क्यों नहीं हो सकता?' 'स्वामी! राजा के अधिकारी आएं, वे पूछे। यदि मैं कह दूं कि यहां नहीं हैं। यदि वे मेरे कथन पर विश्वास न करें, पूरे प्रासाद में खोज करें और वे गुप्त स्थान तक पहुंच जाएं तो मेरा क्या होगा? मैं ऐसा नहीं कर सकती।' मंत्री को यह सुनकर बहुत धक्का लगा जिसके प्रति इतना भरोसा किया, अपना सर्वस्व दे दिया, जिसको नित्यमित्र बना लिया, वह संकट के समय इतनी कच्ची निकली। यह तो बहुत बुरा हुआ। अब मैं क्या करूं? उसने फिर पत्नी को समझाया पर उसने एक भी बात नहीं मानी। मंत्री ने सोचा-अब यहां रहना तो ठीक नहीं है। यहां रह जाऊंगा तो यह सबसे पहले बता देगी। मंत्री ज्ञातिवर्ग के घरों में गया। जो दूसरी कोटि के मित्र थे, पर्व मित्र थे, उनके पास गया। अपनी समस्या प्रस्तुत की-'देखो यह स्थिति बनी है। राजा क्रुद्ध हो गया है।' 'तो हम क्या करें?'-ज्ञातिवर्ग ने स्पष्ट कहा। ‘अब कृपा कर एक काम करो मुझे कहीं छिपा दो। राजा को पता न चले तो मेरी सुरक्षा हो जायेगी और समस्या भी टल जायेगी। यह तो आवेश है राजा का। दस-बीस दिन में शांत हो जाएगा। आवेशवश कोई बात कह दी जाती है पर जब आवेश उतरता है तब कोई बात नहीं रहती। इस प्रकार की बहुत घटनाएं हमने देखी और सुनी भी हैं।' परम विजय की २६२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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