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________________ गाथा परम विजय की गुरु ने कहा-'वत्स! चिंता मत करो, सब स्वर्ग जाने वाले नहीं हैं।' 'गुरुदेव! धर्मस्थानों में इतनी भीड़ है क्या वह स्वर्ग में नहीं होगी?' 'हां, लोग धर्मसभा में आ रहे हैं, सुन रहे हैं पर धर्म की बात गले कहां उतर रही है?' 'गुरुदेव! आपकी बात भी मेरे गले नहीं उतर रही है।' गुरु ने कहा-'ठीक है। कभी तुम्हें समझाऊंगा।' एक दिन प्रातःकाल का समय। गुरु ने शिष्य को बुलाया, कहा-वत्स! कलाल के घर जाओ और एक घड़ा शराब का भरकर ले आओ।' शिष्य देखता रह गया यह क्या आदेश? गुरु भी कभी-कभी बड़ा विचित्र आदेश दे देते हैं। जैन साहित्य का प्रसिद्ध प्रसंग है। गुरु ने अपने शिष्य से कहा-जाओ, सांप की लंबाई नाप आओ। शिष्य अवाक् रह गया। गुरु के आदेश का उल्लंघन भी कैसे करे? वह गया। रस्सी से सांप की लंबाई माप ली। गुरु ने जिस उद्देश्य से आदेश दिया था वह सफल नहीं हुआ। गुरु ने कहा-'एक बार पुनः जाओ। सांप के दांत गिन कर आओ।' क्या यह कोई आदेश होता है? पर गुरु बड़े अजीब होते हैं, ऐसे आदेश दे देते हैं जो प्रथम दृष्टि में उपयुक्त नहीं लगते। शिष्य विनीत था। उसने गुरु के आदेश का पालन किया। सांप के पास गया। उसके मुंह में अंगुली डाली। सांप ने काट लिया। शिष्य चिल्लाया। गुरु ने कहा-'भीतर आ जाओ।' शिष्य भीतर आया। गुरु ने उसे कंबल ओढ़ा कर सुला दिया। शिष्य कोढ़ के रोग से ग्रस्त था। सर्प-विष के अंदर जाते ही प्रतिक्रिया हुई। कोढ़ के सारे कीटाणु बाहर आ गए। उसका शरीर कंचन जैसा कांतिमान् बन गया। गुरु के आदेश के पीछे कोई रहस्य होता है। उसे सामान्य मति वाला समझ नहीं पाता। गुरु ने शिष्य से कहा-क्या सोच रहे हो? मेरा आदेश है-शराब ले आओ और एक घड़ा भरकर लाना है।' आखिर शिष्य गया। शराब लाकर सामने रख दी, पूछा-'गुरुदेव! अब और क्या आदेश है?' गुरु-'इस शराब को पीओ।' शिष्य ने सोचा-आज गुरु को क्या हो गया है? कोई उलटा चक्र चल रहा है। क्या पृथ्वी ऊपर जा रही है और आकाश नीचे आ रहा है? गुरुदेव रोज तो शराब छोड़ने का उपदेश देते हैं, शराब छुड़ाते हैं और आज कह रहे हैं शराब पीओ। शिष्य अजीब उलझन में फंस गया। गुरु ने कहा-'देखते क्या हो, शराब पीओ।' वह गुरु का भक्त था, उसने आदेश को शिरोधार्य किया। हाथ में गिलास उठाई, उसमें शराब ली। गुरु ने कहा-वत्स! एक बात का ध्यान रखना। शराब पीना है और कुल्ला कर थूक देना है।' 'गुरुदेव! जैसी आपकी आज्ञा।' शिष्य शराब पीता गया, कुल्ला करता गया और थूकता गया। पूरा घड़ा खाली कर दिया। शिष्य-'गुरुदेव! अब क्या आदेश है?' गुरु-'कोई आदेश नहीं है। तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान नहीं हो रहा था, मैंने समाधान कर दिया है। २५५
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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