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________________ . थे पिण हठ नहीं छोड़सो, तिणनी परे दुखिया होय। जम्बू कहै ओ कुण हुओ, थे कही बतावो मोय।। जम्बूकुमार बोला-'कनकश्री! दुःखी बनूंगा या सुखी बनूंगा, इस प्रश्न पर हम फिर विचार करेंगे। पहले यह बताओ वह मां का इकलौता पुत्र कौन था? वह आग्रह के कारण दुःखी क्यों बना?' ___ जम्बूकुमार कथा सुनने के शौकीन थे। कथा वास्तव में सरस होती है। कथा में रस होता है। जब रस की बात आती है तब हर किसी का मन होता है। भगवान महावीर ने जो चार अनुयोग की देशना दी, उसमें एक स्थान धर्मकथा का रहा है। यह उल्लेख मिलता है-ज्ञातासूत्र की साढ़े तीन करोड़ कथाएं थीं। अन्यत्र भी कथाओं का विशद संग्रह है। कथाएं रसप्रद होती हैं। रसदार चीज अच्छी लगती है। ___ एक ग्रामीण आदमी शहर में आया। उसे भूख लग गई, वह कंदोई के यहां गया। आज होटल में भोजन मिलता है, उस युग में कंदोई होते थे। कंदोई से पूछा-'भई! यह क्या है?' उसने कहा-'यह जलेबी है।' जलेबी खाने के लिए मन ललचा गया। उसने कहा-'लाओ।' कंदोई ने कहा-'पहले रुपया दो।' 'बताओ, कितनी खिलाओगे।' कंदोई बोला-'पांच रुपया दो तो पेट भरकर खिला दूंगा।' 'ठीक है।' उसने पांच रुपये दे दिये और खाने के लिए बैठ गया। कंदोई ने जलेबी खिलाना शुरू किया। वह जलेबी डालता गया और ग्रामीण किसान खाता चला गया। वह खिलाते-खिलाते थक गया किन्तु ग्रामीण खाते-खाते नहीं थका। कंदोई ने सोचा-यह बला क्या है? इस तरह जलेबी खाता रहेगा तो क्या होगा? उसने पूछा-'अरे! तुम कितना खाओगे?' 'क्या तुम अभी थक गये?' उसने अपनी शेखी-बघारते हुए कहा'आ तो म्हारै आंकण बांकण ईं में पूरो रस। खल खाऊं मण छह तो, आ खाऊं मण दस।। अरे! यह तो बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी है। इसमें बड़ा रस है। छह मन तो मैं खल ही खा जाता हूं। यह रसदार जलेबी कम से कम दस मन तो खाऊंगा ही। तुम चिंता क्यों करते हो?' ___ जहां रस होता है वहां दस मन की बात भी आ जाती है। रसदार चाहे भोजन हो, चाहे बातचीत हो, गाथा परम विजय की PRATHAMSTERROR premar AIMER २४०
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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