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________________ नभसेना बोली-'स्वामी! जो रास्ते को छोड़कर कुमार्ग में जायेगा, उसके कांटे चुभंगे, शूलें चुभंगी। जो रास्ते पर चलेगा, उसके शूलें नहीं चुभंगी।' 'प्रिये! एक आदमी अंधा है और एक आदमी चक्षुष्मान्। दोनों चल रहे हैं। बीच में एक खड्डा आ गया। बताओ उस खड्डे में कौन गिरेगा? चक्षुष्मान् गिरेगा या चक्षुहीन?' 'स्वामी! वह गिरेगा, जिसके आंख नहीं है।' 'प्रिये! कौन चक्षुष्मान् ऐसा है जो उत्पथ में जायेगा? मुझे लगता है-अभी तुमने इस सचाई को समझा नहीं है, तुम्हारी आंख नहीं खुली है इसलिए तुम ऐसी बात कर रही हो। जिसकी आंख खुल जाती है वह उत्पथ पर जाना नहीं चाहता।' गाथा परम विजय की 'स्वामी! क्या हम उत्पथ पर जा रही हैं?' 'प्रिये! यह जो विषय-भोग का मार्ग है वह आदमी को चलते-चलते उत्पथ पर ले जाता है।' 'स्वामी! सब लोग इस मार्ग पर चलते हैं। कैसे ले जाता है यह उत्पथ पर?' 'प्रिये! एक कथा के द्वारा तुम्हें यह सचाई समझाना चाहता हूं। एक राजा की अश्वशाला में दो घोड़े थे। एक घोड़ा विनीत था और एक अविनीत। एक अनुशासित और शिक्षित था और एक घोड़ा शिक्षित नहीं था। जो सम्यक् शिक्षित होता है, वह विनीत होता है। जो विनीत अश्व था, उसे जिनदास श्रावक ने सम्यक् शिक्षा दी और उस अश्व को बहुत तैयार किया।' ___प्रिये! घोड़े बहुत ग्रहणशील होते हैं। घोड़ों को बहुत बातें सिखायी जा सकती हैं। कुछ शिक्षित घोड़े ऐसे होते हैं, जो कठिन स्थिति में भी प्राण बचा देते हैं, सुरक्षा कर देते हैं। जो शिक्षित घोड़ा होता है, वह कभी उन्मार्ग पर नहीं जाता। जो घोड़ा अशिक्षित होता है, वह चलते-चलते कुमार्ग पर चला जाता है।' _ 'प्रिये! राजा के दोनों अश्वों की प्रसिद्धि हो गई। दूसरे राजा ने अपने अधिकारियों को आदेश दियाअमुक राज्य में दो बहुत बढ़िया घोड़े हैं, उनको चुरा लो।' ___श्रेष्ठ चीजों की चोरी और अपहरण की घटनाएं उस युग में भी होती थीं। कर्मकर रात को गए। जैसे ही अश्वशाला में घुसे, अविनीत घोड़ा सामने दिखाई दिया। उसको चुराया। चुराकर ले जाने लगे। सोचा-रास्ते से ले जाएं तो खतरा हो सकता है। वे उन्मार्ग से ले जाने लगे। वह घोड़ा अशिक्षित था। उन्मार्ग पर चला गया। आगे ऐसा ऊबड़-खाबड़ मार्ग आया कि घोड़ा भी फंस गया, आदमी भी फंस गये। निकलने का रास्ता नहीं रहा। वह उत्पथगामी अश्व अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी समस्या बन गया। कुछ दिनों बाद कर्मकरों ने दूसरे घोड़े को चुराया। उसे भी संकीर्ण मार्ग से ले जाने का प्रयत्न किया। घोड़ा बिल्कुल अड़ गया। एक पैर भी आगे नहीं सरका। उसको यह शिक्षा दी हुई थी-रास्ते को छोड़कर कभी कहीं नहीं जाना। वह घोड़ा वहीं खड़ा रहा, आगे बिल्कुल नहीं बढ़ा। आखिर विवश होकर कर्मकर उसको वहीं छोड़ गए। वह शिक्षित और विनीत अश्व पुनः अश्वशाला में पहुंच गया। 'नभसेना! तुम बताओ-शोभा किसकी बढ़ी? विनीत घोड़े की या अविनीत घोड़े की?' २३२
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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