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________________ गाथा परम विजय की विश्व बहुत विशाल है। इसमें बहुत बड़ा है जीव जगत् और बहुत बड़ा है अजीव जगत्, पुद्गलपरमाणु जगत्। संयोग से अनेक घटनाएं घटित होती रहती हैं। कालचक्र के साथ-साथ घटना का चक्र भी चलता है। आयोजन था जम्बूकुमार का स्वागत करने के लिए। जम्बूकुमार की विजय का उल्लास सबके मन में है। अचानक एक कुमार के प्रति आदर का भाव जगा है। जब आदर का भाव होता है तो वह अभिव्यक्त होना भी चाहता है। वह व्यक्त नहीं होता है तो संतोष नहीं मिलता। स्तुति करो या न करो, प्रशंसा करो या न करो, कोई फर्क नहीं पड़ता। किन्तु मनुष्य का स्वभाव है कि जो प्रशंसनीय है उसकी प्रशंसा करके ही वह सुख का अनुभव करता है। कालिदास ने ठीक लिखा-पूज्यपूजाव्यतिक्रमः-जहां पूज्य की पूजा का व्यतिक्रम होता है, वहां अच्छा नहीं होता। जो पूजनीय है, उसकी पूजा होनी चाहिए। जो प्रशंसनीय है, उसकी प्रशंसा स्वाभाविक बात है। एक ओर सब केन्द्रित हैं कुमार के सम्मान के लिए। वह उपक्रम शुरू हो उससे पूर्व ही सबका ध्यान आकाश की ओर चला गया। आश्चर्य के साथ सबने देखा-आकाश से एक आदमी उतर रहा है। तत्राकस्माद् नभोमार्गाद, आगतः खचराधिपः। एकोप्यात्माभितेजोभिर्दिशाचक्रं विभूषयन्।। आकाश से एक व्यक्ति उतरा। ऐसा लग रहा था कोई व्यक्ति नहीं, प्रकाश का पुंज उतर रहा है, तेज का पुंज उतर रहा है। ऊपर-नीचे, आगे-पीछे, दाएं-बाएं-दशों दिशाएं प्रभास्वर हो गईं। चारों तरफ प्रकाश फैल गया। आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। यह कोई सही घटना है या सपना आ रहा है? रात नहीं है, दिन है। दिन में भी सपना आता है। आदमी को दिन में भी कभी-कभी नींद में सपना आ जाता है पर अभी तो आंखों में नींद नहीं है। आंखें खुली हैं। सब जागृत हैं। यह क्या हो गया? यह तेजःपुंज कहां से आ गया?
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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