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________________ यह नीति का वचन है। जम्बूकुमार अपने गुणों से प्रसिद्ध हो गया। एक अच्छे काम से प्रसिद्धि मिले और एक गलत काम से प्रसिद्धि मिले इन दोनों में बहुत अंतर है। 0 हर आदमी में प्रसिद्ध होने की भावना रहती है पर जैसे तैसे प्रसिद्ध होने की बात अच्छी नहीं है। एक युवक ने विश्वविद्यालय के गुंबद पर खड़े होकर पांच-दस छात्रों को गोलियों से भून दिया। वह पकड़ा गया। न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। उससे पूछा गया तुमने ऐसा क्यों किया? उसने कहा-मैंने समाचार-पत्र में पढ़ा, एक छात्र ने अनेक छात्रों को गोलियों से छलनी कर दिया। उसके समाचार पूरे विश्व में छपे। वह प्रसिद्ध हो गया। मेरे दिमाग में भी प्रसिद्धि का भूत सवार हो गया और मैंने यह काम कर दिया। प्रसिद्धि की यह गलत धारणा भी बनती है पर यह वांछनीय नहीं है। जो आदमी अपने गुणों से, अपने पुरुषार्थ और पराक्रम से प्रसिद्ध होता है, वास्तव में वह प्रसिद्धि है। जब अणुव्रत आंदोलन का पहला अधिवेशन दिल्ली में चांदनी चौक में हुआ, बहुत शंका और संशयों के बीच हुआ। बहुत लोगों ने कहा-वहां नहीं करना चाहिए। कौन अणुव्रत को जानता है? कौन आचार्य तुलसी और तेरापंथ को जानता है? दिल्ली में उस समय श्रावक समाज के चार-पांच घर थे किन्तु अणुव्रत की विशेषता, गुरुदेव का भाग्य, कुछ ऐसा हुआ कि अमेरिका सहित अनेक विदेशी समाचार-पत्रों में जो गूंज हुई, एक दिन में जैसे सारा वातावरण बदल गया। 'टाइम', 'लाइफ' जैसे पत्रों में यह समाचार छपा-हिन्दुस्तान का एक छोटे कद का आदमी, वह एक संकल्प के साथ आंदोलन शुरू कर रहा है कि भ्रष्टाचार को मिटाएंगे, नैतिकता को लाएंगे।' गाथा ___अपनी विशेषता से जो प्रसिद्धि होती है, वह महत्त्व की होती है। जम्बूकुमार एक दिन में अपने गुणों परम विजय की से प्रसिद्ध हो गया। राजसभा में राजा ने उसका स्वागत किया। अपने पास अर्धासन पर बिठाया। सारी सभा चित्रवत् देख रही थी यह दृश्य। जम्बूकुमार और सम्राट श्रेणिक बैठे हैं, स्वागत की तैयारी हो रही है। इतने में सबका ध्यान आकाश की ओर चला गया। बैठे हैं भूमि पर। ध्यान चला गया आकाश की ओर। एक विचित्र घटना सामने आ गई। वह घटना क्या है? ध्यान आकाश में क्यों गया? आकाश से क्या उतरा?....सबके नेत्र विस्फारित क्यों बने....?
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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