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________________ गाथा परम विजय की आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण केवल ध्यान-साधक के लिए ही नहीं, सबके लिए जरूरी है। हर व्यक्ति रोज अपना निरीक्षण करे, अपने आपको देखे, उसके पश्चात् अपने ज्ञान का, अपनी शक्ति और अपने आनन्द का परीक्षण करे। आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण ये दोनों अध्यात्म के द्वार बनते हैं। जम्बूकुमार आत्म-निरीक्षण में लगा पद्मसेना कह रही है कि किसी ने आपको ठग लिया है। क्या इस कथन में कोई सचाई है? क्या मैं ठगा गया हूं? क्या सुधर्मा स्वामी ने मुझे जिस सत्य का उपदेश दिया वह कोई ठगाई है? जम्बूकुमार इस तथ्य के परीक्षण में लग गये। ___ परीक्षा बहुत जरूरी है। किसी भी बात को सुना, वह बात अच्छी लगी तो उसे एक बार मान लिया किन्तु मानने के बाद उसकी परीक्षा भी करनी चाहिए। मानने तक रुकना नहीं है, पहुंचना है जानने तक। जानना तब होगा, जब परीक्षा होगी। ___ आचार्य भिक्षु ने परीक्षा पर बहुत बल दिया था। उन्होंने कहा–धर्म को स्वीकार करो तो परीक्षा के बाद स्वीकार करो। उन्होंने दृष्टांत की भाषा में कहा-कोई स्त्री घड़े को खरीदना चाहती है तो पहले घड़े को देखती है, ठोक-बजा कर परीक्षा करती है कि वह घड़ा कहीं से फूटा हुआ तो नहीं है। जब घड़ा भी परीक्षा के बाद लिया जाता है तब बड़े सत्य को आंख मूंदकर कैसे स्वीकार किया जाए? परीक्षा के बाद ही उसका स्वीकार होना चाहिए इसलिए आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण–दोनों बहुत जरूरी हैं। बहुत सारे धार्मिक लोग भी आत्मनिरीक्षण नहीं करते, अपने आपको नहीं देखते, दूसरों को ज्यादा देखते हैं। फिर लौकिक आदमी की तो बात ही क्या करें! वह दूसरों को देखेगा तो कभी भला और कभी बुरा सोचेगा। ___ जम्बूकुमार ने आत्मनिरीक्षण शुरू किया। वह कुछ क्षण मौन रहा, सोचा-पद्मसेना ने अभी जो कहा, क्या सचमुच ऐसा हुआ है? क्या मैं ठगा गया हूं? क्या किसी ने मुझे ठग लिया है? ____ जम्बूकुमार मौन रहे, दो क्षण के लिए आत्मनिरीक्षण में रहे तब पद्मसेना ने सोचा-मेरा काम हो गया। अब जम्बूकुमार ने संभवतः मेरी बात मान ली है, स्वीकार कर ली है। अब जैसे ही बोलेंगे तो पहला शब्द यह होगा-अब मैं साधु नहीं बनूंगा।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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