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________________ जोगी ने सिर पर हाथ रखा और बोला-'जाओ, तुम्हें अमरजड़ी मिल गई।' कथा का उपसंहार करते हुए पद्मसेना ने कहा-'प्रियतम! आपको भी ऐसा कोई भरमाने वाला .ok मिला है। जो कह रहा है साधु बन जाओ, अमर बन जाओगे, मोक्ष में चले जाओगे, देवता बन जाओगे। अमरजड़ी की प्राप्ति जैसा प्रलोभन दे दिया है। इस प्रलोभन के पीछे कितनी ठगाई चल रही है, उसे आप नहीं जानते। आपके साथ अवश्य ही धोखा हो रहा है और आप किसी के शब्दजाल और मायाजाल में फंस गए हैं। ... 'प्रियतम! कुछ होना जाना नहीं है। न कोई अमर होता है, न कोई स्वर्ग है, न कोई मोक्ष है, कुछ नहीं है। केवल धोखा है। आपको कोई रानी जैसा गुरु मिल गया जिसने भ्रम में डाल दिया है। अब आप किसी सच्चे संन्यासी के पास जाएं तो आपकी आंख खुल जाए।' 'प्रियतम! हमारा और कोई उद्देश्य नहीं है। मैं तो इतना चाहती हूं कि मेरा पति भ्रमित है, उसकी आंखें बंद हैं, उसके नेत्र उद्घाटित हो जाएं तो मैं स्वयं को कृतार्थ मानूंगी। हमारा प्रयत्न भी सफल होगा।' 'प्रियतम! क्या आपको अभी भी यह पता नहीं चला कि आप धोखा खाए हए हैं। क्या यह अनुभव नहीं हो रहा है कि आपके साथ धोखा हो रहा है, आप ठगे जा रहे हैं? आप इतनी लंबी-चौड़ी बातें करते हैं, आदर्श की बातें करते हैं और जानते कुछ भी नहीं हैं। ज्यादा लोभ और प्रलोभन से समस्या पैदा होती है। विद्वान् लोग कहते हैं कार्य को सोच-विचार कर करना चाहिए।' ___ मैंने एक उद्योगपति से पूछा-तुम्हारे पास इतनी संपन्नता थी, सब कुछ था फिर तुमने इतने गलत काम गाथा क्यों किए? आज सैकड़ों मुकदमे चल रहे हैं। जगह-जगह बन्धन हैं। वह बोला-मेरे मन में यह भावना जाग परम विजय की गई कि मुझे हिन्दुस्तान का नंबर वन उद्योगपति बनना है, सबसे बड़ा उद्योगपति बनना है। इस आकांक्षा ने मुझसे ये सारे काम करवा दिये। जहां अतिलोभ होता है आकांक्षा की अति होती है वहां समस्याएं होती हैं। पद्मसेना ने भावपूर्ण स्वर में कहा–'प्रियतम! मेरी बात ध्यान से सुनो। अतिलोभ मत करो।' जम्बूकुमार ने बड़ी शांति से सब कुछ सुना, सुनकर बोला-'पद्मसेना! तुम भी वाक्पटु हो, चतुर हो, पढ़ी लिखी हो। बड़ी चतुराई के साथ तुमने अपनी बात रखी है। पर पद्मसेना! तुम्हारी बात भी मेरे गले नहीं उतरी। कानों तक तो आई है पर गले नहीं उतरी। गले उतरे बिना नशा नहीं आता। नशा तब आता है जब चूंट गले से नीचे उतरता है। कोई बात गले के नीचे उतर जाए तो नशा आए।' पद्मसेना--'प्रियतम! मेरी बात गले क्यों नहीं उतरी? इसका कारण तो समझाइए।' जम्बूकुमार-'मैं कारण भी समझाऊंगा। तुम कारण को समझने का प्रयत्न करोगी तो तुम्हें उस सचाई का साक्षात्कार होगा, जिसका साक्षात्कार कोई विरल मनुष्य ही कर पाता है।' २०४
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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