SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा परम विजय की स्वामी! तपस्या करने वाला मरकर कहां जाता है? उसे क्या मिलता है? शास्त्रकार कहते हैं - उसे स्वर्ग मिलता है। सुकुले जन्म-वह अच्छे कुल में जन्म लेता है। आप और हम सब उत्तम कुल में जन्मे हैं। आप क्षमा करें। मैं कहना तो नहीं चाहती पर बहुत कटु बात कह रही हूं-आपमें समझदारी नहीं है, जड़ता है। जड़ आदमी पकड़ी हुई बात को छोड़ता नहीं है। आपमें भी जड़ता आ गई। आप अपनी जिद को छोड़ नहीं रहे हैं। ' 'स्त्री का हठ विख्यात है किन्तु ऐसा लगता है कि यह स्त्री का नहीं, जम्बूकुमार का हठ है।' सखेऽसमीक्षाकारीव, वर्तते ग्राहवानयम् । प्राप्तं तपःफलं त्यक्त्वा, पुनः कर्तुं समीहते || 'स्वामी! आप देखिए ! व्यक्ति स्वर्ग में जाता है वहां अप्सराएं उसके स्वागत में तैयार रहती हैं। हम सब तो अप्सरा या इंद्राणी के समान हैं। यह सेठ ऋषभदत्त का घर स्वर्ग के समान है । आपका शरीर देवताओं के तुल्य सुकोमल है। आपके और हमारे घर में संपदा की कोई कमी नहीं। आप हमें यह तो बताएं कि इससे ज्यादा और क्या दुर्लभ होता है ? वयं रंभासमा नार्यः सद्मैतत् स्वर्ग सन्निभम् । वपुर्दिव्यं गृहे संपद्, दुर्लभं किमतः परम् ।। जितनी दुर्लभ बातें होती हैं, वे हम सबको मिली हैं, फिर भी पता नहीं आपका चिंतन किस आसमान में जा रहा है? आप क्या सोच रहे हैं? हम तो आपकी बात नहीं समझ पा रही हैं' - समुद्रश्री ने एक वक्तव्य सा दे डाला। जम्बूकुमार मौन भाव से सब कुछ सुनता रहा। काफी कड़वी मीठी बातें कहीं किन्तु जम्बूकुमार शांत बना रहा। क्योंकि उस पर कोई असर नहीं हो रहा है। वह जिस चेतना में जी रहा है उस चेतना के लिए कोई समस्या नहीं है। वह सद्यः परिणीता कन्याओं की व्यथा, वेदना और भावना को समझ रहा है। वह उनकी वेदना के विलय और भावना के परिवर्तन की युक्ति सोच रहा है। कन्याएं जम्बूकुमार के संकल्प को शिथिल करने का प्रयत्न कर रही हैं। वे हाव-भाव, विलास, संलाप आदि के द्वारा जम्बूकुमार को सम्मोहित कर सुख का संसार बसाने का सपना संजो रही हैं। सपने को साकार बनाने के लिए कन्याएं नई युक्तियां सोच रही हैं जम्बूकुमार को समझाने की, उसे अपने मोहपाश में बांधने की। जम्बूकुमार संसार-सुख के लिए व्याकुल कन्याओं को अध्यात्म की दिशा में मोड़ने की युक्ति पर विचार कर रहा है। कौन कैसी प्रखर युक्तियों का प्रयोग करेगा? और कौन किसकी युक्तियों को निरस्त करेगा? १६६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy