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________________ रहा है। बड़े आदमी की बात छोड़ दें, छोटा बच्चा भी इंद्रियों के पीछे दौड़ना शुरू कर देता है। छोटे-छोटे बच्चे दर्शन करने आते हैं। चार-पांच वर्ष के बच्चे का सीधा हाथ मोबाइल पर जाता है। घर में रहता है तो .. प्रायः टी.वी. पर दृष्टि जाती है। बच्चे जितना टी. वी. देखना पसन्द करते हैं, बड़े शायद नहीं देखते होंगे। बच्चों से रहा नहीं जाता। हम लोग राजलदेसर में थे। अहमदाबाद से एक परिवार आया। उपासना में बैठा था। एक भाई ने कहा-यह टी. वी. बहुत देखता है। लड़का अवस्था में ८-6 वर्ष का था पर बहुत होशियार था। मैंने पूछा-'तुम टी. वी. कितने घंटा देखते हो?' 'आठ घंटा देखता हूं।' मैंने कहा-'कम कर सकते हो?' उसने कहा-'बिल्कुल संभव नहीं है।' मैंने सोचा-ऐसा उत्तर तो बड़ा आदमी भी नहीं देता। थोड़ा सोचने का अवकाश रहता है। बालक ने तो सोचने का भी अवकाश नहीं रखा। आज स्थिति यह है बच्चों की इंद्रिय चेतना भी-अणुसोयपट्ठिए बहु जणम्मि-प्रवाह के पीछे चल रही है। सब लोग उस दिशा में जा रहे हैं जहां इंद्रियां ले जाना चाहती हैं किंतु भगवान महावीर ने कहा-जो कुछ होना चाहता है, जो कुछ बनना चाहता है, सफल होना चाहता है, बड़ा आदमी बनना चाहता है, बड़ा काम करना चाहता है उसके लिए जरूरी है कि वह अनुस्रोत-इंद्रियों । के पीछे चलने की बात पर ब्रेक लगाये। उस पर ब्रेक लगाये बिना कोई बड़ा आदमी बन नहीं सकता। गाथा शासक हो या उद्योगपति, व्यापारी हो या घर का मुखिया, इंद्रियों के पीछे चलेगा तो उसके पैरों में बेड़ियां परम विजय की लग जाएंगी, उसकी गति में अवरोधक आ जायेगा। वह कार तीव्र गति में सीधी नहीं चला सकता। बहुत आवश्यक है इंद्रियों पर नियंत्रण करना, इंद्रियों की हर मांग को पूरा नहीं करना। खाने की जरूरत है, खाने की बहुत वस्तुएं हैं पर यह नहीं होना चाहिए कि बर्फ अच्छी लगती है तो बर्फ ही बर्फ खाता चला जाए फिर चाहे श्वास की बीमारी भले हो जाए। श्वास की बीमारी का प्रमुख कारण है बर्फ, आइसक्रीम का अत्यधिक सेवन। केवल श्वास ही नहीं, अधिकांश बीमारियां इंद्रियों के पीछे दौड़ने से होती हैं, रसना के पीछे दौड़ने से होती हैं। इसलिए इंद्रियों पर विजय पाना बहुत जरूरी है। जम्बूकुमार का चिन्तन इंद्रिय विजय की दिशा में जा रहा है। नवोढ़ा का चिन्तन इंद्रिय सुख के आसेवन की दिशा में जा रहा है। यही विवाद और संवाद का विषय बना हुआ है। समुद्रश्री बोली-'स्वामी! आप क्या कर रहे हैं? आप जरा चिंतन करें। तपस्या का फल क्या है? क्या आप यह जानते हैं? तपस्या का फल है-सुख। वह स्वर्ग में मिले अथवा मनुष्य लोक में। तपसां हि फलं सौख्यं, तत्स्वर्गे वा महीतले। प्राप्तं चापि न जानाति, नूनमध्यक्षतो जड़ः।। आपको अकूत वैभव प्राप्त है, सुख-सुविधा के साधन मिले हुए हैं, पर ऐसा लगता है कि आपको कोई अच्छा सलाहकार मित्र नहीं मिला है। आपको कोई शिक्षक या गुरु नहीं मिला जो अच्छी सलाह दे सके और आपको दुनिया में जीना सिखा सके। १६८
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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