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________________ बुद्ध बोले- 'परीक्षा कर लो।' संभ्रांत नागरिक राजा के पास गया, बोला- 'महाराज ! आप तो बहुत सुखी हैं।' राजा बोला-'मैं सुखी कहां हूं? मेरे सामने कितनी समस्याएं हैं। मुझे जो चाहिए, वह मिल नहीं रहा है। मैं चाहता हूं-पड़ोसी राज्य पर अपना अधिकार जमा लूं पर वह अभी हो नहीं पा रहा है।' वह अमात्य, नगरश्रेष्ठी आदि के पास गया। सबसे पूछा- आप सुखी हैं? किसी ने स्वयं को परम सुखी नहीं माना। सबके मन में कोई ना कोई चाह है। चाह के पीछे दुःख जुड़ा हुआ है। वह आखिरकार उस आदमी के पास पहुंचा-'बोलो, तुम्हें क्या चाहिए ?' 'मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।' 'तो आगे चलो, गुरुजी के पास चलो। तुम्हें आशीर्वाद दिलाएं।' वह आगे आया। बुद्ध ने पूछा- 'क्या चाहते हो ?' 'कुछ भी नहीं चाहता।' 'क्या आशीर्वाद लेना है।' 'नहीं।' 'मैं तुमको आशीर्वाद देना चाहता हूं।' 'आप देना चाहते हैं तो यह आशीर्वाद दें कि मेरे मन में कोई चाह पैदा न हो।' जो व्यक्ति इस भाषा में सोचता या बोलता है, उसे दुःख कहां से होगा ? मां की एक इच्छा पूरी हो गई। मां की चाह थी - विवाह हो जाये। विवाह हो गया। एक चाह पूरी होते ही दूसरी चाह ने जन्म ले लिया - जम्बूकुमार घर में रह जाए। जब तक यह पूरी नहीं होती है तब तक मन में एक तनाव बना हुआ है। तनाव के साथ मन में एक भरोसा भी है । मां ने सोचा-एक स्त्री आती है तो भी पुरुष को अपने मोह में बांध लेती है। ये आठ-आठ नव यौवनाएं सर्वांग सुंदर हैं। ये अवश्य अपना करतब दिखाएंगी । जम्बूकुमार पर ऐसा कामण डोरा डालेंगी जम्बूकुमार घर में रह जायेगा। संशयालु बन गई मां। एक मन कहता है - यह दीक्षा लेगा। दूसरा मन कहता है - नहीं, यह घर में रह जाएगा। इन दोनों विकल्पों के बीच में मां का मन झूल रहा है। रात्रि का समय । जम्बूकुमार के लिए आरक्षित भव्य एवं रमणीय कक्ष । नव विवाहित पत्नियां उस कक्ष में प्रियतम की प्रतीक्षा में लीन हैं। मां को प्रणाम कर जम्बूकुमार ने उस भव्य कक्ष में प्रवेश किया। पत्नियों ने प्रियतम का स्वागत किया। जम्बूकुमार रत्नजटित पर्यंक पर आसीन हुआ । आठों पत्नियां सामने बैठ गईं। वातावरण शान्त और मौन । दिन में कोलाहल ज्यादा होता है, रात में मौन का साम्राज्य रहता है। आजकल तो रात को भी नीरव शांति नहीं रहती । रात को भी दो- तीन बजे तक कोलाहल चलता है। उस युग में रात में नीरवता व्याप्त हो जाती थी । जम्बूकुमार के कक्ष का वातावरण शांत था । १५८ Um गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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