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________________ गाथा माता-पिता के मन में एक शल्य है, वह खटक रहा है। क्या करें? फंस गये। विवाह न करते तो भी समस्या, कर दिया तो भी समस्या। किधर जायें? इतो व्याघ्र इतस्तटी। एक आदमी जा रहा था। नदी सूखी थी। पार कर गया। आगे जंगल आया। जंगल में खूखार जानवर होते हैं। वहां रहने वाले आदमी ने कहा-आगे मत आओ, आगे बाघ है। उसने सोचा-वापस चला जाऊं। वर्षा हो रही थी। नदी में अचानक पानी का पूर आ गया। फिर आवाज आई-इधर मत आओ, पानी का पूर आ गया है। वह बीच में फंस गया एक ओर बाघ, दूसरी ओर नदी-वह कहां जाये? कन्याओं के माता-पिता के मन में एक खटक है-इतना भव्य विवाह समारोह हुआ, इतना दहेज दिया, इतने लाड-कोड किए। मन की आशा को पूरा किया। हमारे घर में अपूर्व महोत्सव हुआ।....यदि जम्बूकुमार ने शील-व्रत का पालन किया तो क्या होगा? हमारे सुनहले सपनों का क्या होगा? म्हें लाड-कोड किया घणा ए, पूरी मन री हूंस। ते सगली बातां बिगड़सी ए, जम्बू रे पाल्या सूंस।। जम्बूकुमार के माता-पिता के मन में भी कोई उल्लास नहीं है। वे चिंता में डूबे हुए हैं कि देखो, सगे-संबंधियों ने कितना स्वागत किया, कितना अच्छा भोजन खिलाया, कितना बड़ा दहेज दिया। जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, इतना अपार धन दिया पर कौन भोगेगा? यह संपदा किसके काम आयेगी? इस धन का मालिक कौन होगा? हमारे पास तो वैसे ही बहुत धन है। हमें तो जरूरत भी नहीं है। जम्बूकुमार के लिए दिया, इन लड़कियों के लिए दिया। इन लड़कियों का क्या हाल होगा? एक ऐसा माहौल बन गया, मन की विचित्र सी स्थिति बन गई कि क्या करे? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। भीतर ही भीतर दिल को यह चिन्तन कचोट रहा है जम्बूकुमार गृहस्थी बसने से पहले ही उजाड़ देगा। यह मुनि बन जाएगा। कन्याओं का क्या होगा? इस धन का क्या होगा? यह धन किसके काम आयेगा? वले माता पिता जंबुकुमार नां, त्यांने पिण ओहिज सोच। मांड्यो घर बिखेरने ए, साधु थई करे लोच। तो दुःख हुवै मो भणी ए।। बड़ा जटिल विषय हो गया। ऐसा लगता है कि सामाजिक जीवन में तो सामाजिक रिश्तों को निभायें तब ही लोगों को अच्छा लगता है। सामाजिक स्थिति में आध्यात्मिक, धार्मिक बात बीच में आ जाए तो वह लोगों को प्रिय नहीं लगती। लोग उसको ठीक भी नहीं मानते। वे यह देखते हैं कि मेरा घर जमा रहे, मेरा नाम अमर रहे, चलता रहे। संतान नहीं है तो गोद लेकर ही चलाओ पर वास्तव में नाम किसका चलता है? ___ भरत चक्रवर्ती तमिस्रा गुफा में गया। चक्रवर्ती की यह प्रथा होती है कि जब वैताढ्य को पार करता है, तमिस्रा गुफा में जाकर वह रास्ता खोलता है और अपने नाम का आलेखन करता है। भरत चक्रवर्ती ने देखा-गुफा का मुख्य शिलालेख नामों से आकीर्ण है। कोई स्थान खाली नहीं है। बिना मिटाए मेरा नाम लिखना संभव नहीं है। उसने सोचा-अरे! मुझसे पहले तो इतने चक्रवर्ती हो चुके हैं। मेरा यह चिन्तन मिथ्या है कि मैं प्रथम चक्रवर्ती हूं। नाम किसका चला है? कितने बड़े लोग हो गये, उन्हें कोई जानता परम विजय की १५५
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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