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________________ INEMunawa गाथा परम विजय की 'पिताश्री! यह उपयुक्त क्षण है। क्योंकि समय पर ठीक निर्णय लिया जाता है तो वाह-वाह हो जाती है, सफलता मिलती है, विजय हो जाती है। समय पर ठीक निर्णय नहीं लिया जाता है तो असफलता भी मिल जाती है।' वि. सं. १९९७ में पूज्य गुरुदेव का चातुर्मास बीकानेर में था। चातुर्मास की सम्पन्नता पर रांगड़ी चौक होते हुए विहार हो रहा था। हजारों-हजारों लोग विहार में सहयात्री थे। वहीं दूसरे संप्रदाय के आचार्य का चातुर्मास था। उनका भी विहार निर्णीत था। दोनों विहार निर्विघ्न हों, कहीं बाधा न आए, टकराव का प्रसंग न बने इसलिए पहले से ही सब कछ खोज करने के बाद विहार का मार्ग तय किया। संयोग ऐसा बना कि जिस रास्ते से आचार्यवर पधार रहे थे, उसी मार्ग में सामने से दूसरे संप्रदाय के आचार्य का जुलूस आने लगा। समस्या हो गई कि अब कैसे जाएं? कौन पहले निकले? सबने कहा-हम नहीं रुकेंगे। हम कोई कमजोर थोड़े ही हैं। गुरुदेव ने देखा यह तो अच्छा नहीं है, अकारण संघर्ष होगा। हो सकता है कुछ अघटित भी घट जाए। चारों ओर दबंग लोग जमे हुए हैं। कहीं शक्ति का प्रदर्शन न कर दें। गुरुदेव ने एक क्षण में निर्णय लिया, तत्काल रांगड़ी चौक में मुड़ गए। ईश्वरचंदजी चौपड़ा आये, बोले-यह क्यों? हम क्यों मुड़ें? हम क्या कमजोर हैं? बहुत लोग शक्ति-प्रदर्शन के लिए सन्नद्ध थे। गुरुदेव ने कहा-सब यहीं रुक जाओ। वह एक क्षण का निर्णय था जिससे संघर्ष शांति में बदल गया। बीकानेर में उसकी जो चर्चा हुई, उससे संघ की महिमा समुन्नत हुई। तत्कालीन महाराजा गंगासिंहजी ने कहा-'पूज्य महाराज अवस्था में तो छोटा है, पण काम बड़ा आदमी जिसो कर्यो है, अनुभवी व्यक्ति जैसा कार्य किया है। आज एक बड़ा संघर्ष टल गया, अन्यथा पता नहीं क्या होता, बीकानेर के सिर पर कलंक लग जाता।' आचार्यश्री ने अपनी बुद्धिमत्ता से संघर्ष को टाल दिया। सही निर्णय होता है तो सब ठीक हो जाता है और निर्णय गलत होता है तो काम उलट जाता है। पुत्रियों ने कहा-पिताश्री! यह निर्णय का क्षण है। आप क्या चाहते हैं?' आठ माता और आठ पिता, सबने एक स्वर में कहा–'पुत्रियो! जो तुम्हारा निर्णय है, वही हमारा निर्णय है। हम तुम्हारे साथ हैं।' 'पिताश्री! फिर आप तैयारी करें।' सबने मिलकर एक दूत निर्धारित किया, दत को बुलाया, बुलाकर कहा-'तुम श्रेष्ठी ऋषभदत्त के प्रासाद जाओ, वहां जाकर सूचना दो-हम सब जम्बूकुमार के साथ अपनी पुत्रियों का संबंध करने के या १४७
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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