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________________ कढ़ी बना ली। शाम को पति आया, भोजन करने बैठा । पत्नी ने कढ़ी परोसी । पति ने दो-चार कौर लिए। पति बोला-'क्या बात है? आज कढ़ी में स्वाद बहुत है। बहुत स्वादिष्ट कढ़ी बनाई है।' उसने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा - 'हां, आज कढ़ी बहुत स्वादिष्ट लगेगी।' पति प्रशंसा करता गया और पत्नी व्यंग्य में हंसती गई। दूसरा दिन, सुबह जगा । पेटी को खोला, देखा - पेटी खाली है। उसने पूछा-'खोपड़ी कहां गई ?' पत्नी-'कल तुमने कढ़ी खाई थी । वह उसी खोपड़ी के चूर्ण से बनी थी।' पति सिर पर हाथ रख कर बोल उठा जम्मो कलिंगदेसे, अंगदेसे य मज्झिमे । मरणं समुद्रतीरे, अज्जो किं किं भविस्स || पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाता है। आठ कन्याओं ने उत्तम कुल में जन्म लिया, उत्तम वर के साथ विवाह के लिए अनुबंध हुआ । विवाह होने से पूर्व ही संन्यास की बात सामने आ गई। एक प्रश्न खड़ा हो गया- 'अब क्या होगा ?' पिता ने पुत्री को वस्तुस्थिति की अवगति दी - समुद्रश्री ! जम्बूकुमार विवाह कर सकता है, किंतु उसकी शर्त यह है-विवाह के बाद घर में नहीं रहेगा, साधु बन जायेगा । अब बोलो, तुम्हारी क्या इच्छा है?" समुद्रश्री गहरा निःश्वास छोड़ते हुए बोली- 'पिताश्री ! आप क्या कहते हैं? आपका परामर्श क्या है?' 'पुत्री! यह तुम्हारे जीवन का प्रश्न है इसलिए ज्यादा तो तुम्हें सोचना है पर यह तथ्य तुम्हारे सामने रहे-अभी तक विवाह नहीं हुआ है, केवल संबंध हुआ है। अगर जम्बूकुमार घर में नहीं रहता है तो हम इस संबंध को तोड़ सकते हैं। कहीं अन्यत्र विवाह का संबंध स्थापित हो सकता है।' 'पिताश्री! वचन का भी कुछ मूल्य होता है। जब विवाह का वचन दे दिया और एक निश्चय कर लिया तो क्या उसे बदलना अच्छा है ? ' 'पिताश्री! यह दृढ़ निश्चय है कि अगर विवाह करूंगी तो जम्बूकुमार के साथ ही होगा, और किसी के साथ नहीं।' म्हें परणा तो जम्बूकुमार रे, नहीं परणा अवर नै । ओछा जीतब कारणे ।। 'पिताश्री! किसी आदमी ने हाथी पर चढ़ने का संकल्प ले लिया। उसके सामने गधे को लाकर खड़ा करें और कहें- लो सवारी करो। क्या वह कभी पसन्द करेगा?' १४२ ‘पिताश्री! जम्बूकुमार जैसा यशस्वी वर मिला। उसके साथ संबंध स्थापित कर लिया । मन में भी निश्चय कर लिया। यह निश्चय अटल है कि अगर विवाह होगा तो जम्बूकुमार के साथ, अन्यथा नहीं होगा। इस निश्चय में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।' पिता-'समुद्रश्री! बात तो ठीक है पर तुमने यह सोचा या नहीं कि भविष्य क्या होगा ?' ma गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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