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________________ 27. N गाथा परम विजय की मुनि जीवन के प्रारंभिक वर्षों की घटना है। पूज्य गुरुदेव का सरदारशहर में प्रवास था। श्री समवसरण के पीछे खेजड़े का वृक्ष है। मैं प्रयोजनवश वहां खेजड़े के वृक्ष से कुछ दूर बैठा था । एक भाई आया, बोला-'महाराज! आप उस युवक को समझाएं।' मैंने पूछा- 'क्यों, क्या बात है ?' 'मुनिश्री! वह मां का बड़ा अविनीत है, बहुत दुःख देता है।' वह युवक आया, मैंने बातचीत की। मैंने पूछा- 'मां के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हो ? जिस मां ने पाला-पोसा, बड़ा किया, इतना सब कुछ किया, उसके साथ ऐसा व्यवहार ?' उसने जो उत्तर दिया, वैसा उत्तर मैंने कभी नहीं सुना। वह तत्काल खेजड़े की ओर अंगुली कर बोला-'इस खेजड़े के वृक्ष को किसने पाला है? सब अपनी-अपनी नियति से बड़े होते हैं।' मैंने कहा-'चिन्तन का यह कोण है तब बात करने की जरूरत ही नहीं है।' कोई कोई ऐसा अविनीत होता होगा। अन्यथा मां के प्रति और मां की ममता के प्रति सब प्रणत होते हैं। जम्बूकुमार का मन भी थोड़ा पसीज गया। जम्बूकुमार अपनी दुविधा प्रस्तुत करता, उससे पूर्व पिता सेठ ऋषभदत्त भी आ गये। मां-पुत्र को गंभीर वार्तालाप में लीन देख कर बोले-'आज मां बेटा क्या वार्ता कर रहे हैं?" मां ने कहा-'हम क्या कर रहे हैं, यह बात सुनोगे तो पता चलेगा।' 'बात क्या है?' 'जम्बूकुमार कह रहा है कि मैं साधु बनूंगा।' एकदम ऋषभदत्त का सिर ठनक गया - क्या, साधु बनेगा? सारा वातावरण फिर मूर्च्छामय बन गया। ऋषभदत्त बोला-'जम्बू! साधुपन की बात कर रहे हो। क्या तुम्हें पता नहीं है कि हमारे सामने समस्या क्या है? तुम तो बाहर गए हुए थे, इधर-उधर घूम रहे थे और मैंने तुम्हारे लिए अनेक अनुबंध कर लिए। उनका क्या होगा? क्या सारे किये कराये पर पानी फेरना चाहता है? मेरी भी प्रतिष्ठा है, समाज में इज्जत है, शान है, मैं राजगृह का मुख्य श्रेष्ठी हूं। मैंने जो वचन दिए हैं, उनका क्या होगा ?' “पिताश्री! आपने क्या वचन दिया है?' 'जम्बू! मैंने तेरी सगाई कर दी है। एक जगह नहीं, आठ जगह विवाह का अनुबंध कर दिया है।' प्राचीन युग में सगाई, संबंध होता तो लड़के, लड़कियों को पूछने की जरूरत नहीं होती थी। मातापिता जैसा उपयुक्त समझते वैसा निर्णय कर लेते। आजकल युग बदल गया। आज तो लड़का लड़की-दोनों अपने अपने ढंग से सोचते हैं, अपने जीवन का निर्णय स्वयं लेना पसंद करते हैं। श्रेष्ठी ऋषभदत्त ने कहा-'मैंने आठ कन्याओं के साथ सगाई कर दी है। वे प्रतिष्ठित परिवारों की हैं। तू कहता है कि मैं साधु बनूंगा तो मेरा क्या होगा ? जम्बू ! क्या बिना सोचे समझे इस प्रकार की बात करना उपयुक्त है ? अगर साधु ही बनना था तो पहले ही बता देता । १२६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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