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________________ गाथा परम विजय की ते धन खाओ पीओ बिलसलो सुख भोगवो संसार। लाहो ल्यो मिनख रा भवतणो, नहीं पामसौ बार बार।। आस्तिक और नास्तिक दोनों इस तर्क का प्रयोग करते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में एक पूरा प्रकरण है नास्तिकवाद का। नास्तिक विचारधारा वाला व्यक्ति, जो आत्मा को नहीं मानता, कहता है-कौन जानता है परलोक को? किसने देखा है परलोक? परलोक है या नहीं? मरने के बाद कौन नरक में जायेगा और कौन स्वर्ग में? यह किसने जाना और देखा है? ___ अभी तो ये काम मेरे हाथ में हैं, हस्तगत हैं। आगे कुछ मिलेगा, यह कोरी कल्पना है। यह जो मनुष्य का जन्म मिला है, इसमें जितना सुख भोगना है, जितना आराम करना है, कर लो क्योंकि मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलेगा। हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए अत्थि वा नत्थि वा पुणो? किसी साधु के पास जाओ, वह कहेगा-'भाई! त्याग करो, तपस्या करो। मनुष्य का जन्म मिला है। यह मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं मिलेगा।' ___ आस्तिक और नास्तिक दोनों का तर्क एक ही है मनुष्य का जन्म बार-बार नहीं मिलेगा। एक कहता है जितना भोगना है, उतना भोग कर लो। एक कहता है जितना त्याग करना है, उतना त्याग कर लो। जम्बूकुमार ने कहा-'मां! इस धन में बहुत लोगों का सीर है। यह धन किसी क्षण नष्ट हो सकता है। जब मनुष्य मरता है तब उसके साथ एक तार भी नहीं जाता। इसलिए आप इस धन-वैभव के जाल में उलझने की प्रेरणा न दें। मुझे दीक्षा के लिए अनुमति दें।' हिवै जम्बू कहै सुणो मातजी, धन में घणा रो सीर...। वले सिड़े गले विणसे विले हुवे, असासतो अनंत असार। तिण कारण इणमें राचू नहीं, लेसूं संजम भार।। बले परभव जाता जीव नें, साथे ने आवे इक तार, कृपा करी दो मौने आगन्यां, मत करो ढील लिगार।। मां समझदार श्राविका थी, तत्त्व की जानकार थी किन्तु जब मोह का बादल आता है, चेतना का सूर्य उसमें एक बार ढक जाता है, छिप जाता है। उसका पता नहीं चलता। ____ जब भृगुपुत्रों ने दीक्षा की बात कही, तब भृगु ने यही तर्क दिया था-बेटा! आगे कुछ भी नहीं है। जो धन और ऐश्वर्य मिला है, इसका भोग करो।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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