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________________ BACHORNERHदार सके, विशाल संघ का सम्यक् संचालन कर सके। गुरुदेव तुलसी ने अनेक बार मुझे कहा-आचार्य बनते ही एक चिंता या चिंतन शुरू हो जाता है कि जो दायित्व मुझे मिला है उस दायित्व का निर्वाह कर सके, ही ऐसा व्यक्ति कौन हो सकता है? आचार्य के लिए सबसे बड़ा चिंतन का यही विषय रहता है। परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए, परम्परा को स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक है-योग्य व्यक्ति की खोज। सुधर्मा भी योग्य व्यक्ति की खोज कर रहे थे। अनायास जम्बूकुमार सामने आ गया। आचार्य सुधर्मा ने धर्म देशना दी और विशेष लक्ष्य के साथ दी। उनका लक्ष्य रहा–जम्बुकुमार में वैराग्य का जो बीज उप्त है, वह प्रस्फुटित हो जाए। श्रेणिक ने भगवान महावीर से जब यह प्रश्न पूछा था अंतिम केवली कौन होगा? महावीर ने कहाजम्बूकुमार नाम का युवक होगा। उस समय सुधर्मा भगवान महावीर की उपासना में आसीन थे। जम्बूकुमार सुधर्मा से अज्ञात नहीं था। सुधर्मा इस बात को जानते थे-राजगृह में रहने वाला जम्बूकुमार ही मेरा पट्ट शिष्य होगा, वही अंतिम केवली होगा। ___सामने अवस्थित जम्बूकुमार के आभामंडल ने आर्य सुधर्मा को आकृष्ट किया। उन्होंने निश्चय किया-'आज जम्बूकुमार को लक्ष्य कर उपदेश देना है, जिससे उसमें वैराग्य जागे, वह मुनि बने और विकास करे।' ____ धर्म की देशना सत्य की देशना है, यथार्थ की देशना है। सत्य की बात एक अर्थ में थोड़ी कड़वी भी होती है, लोक व्यवहार से भिन्न भी होती है। जहां लोक-व्यवहार है वहां रागात्मक, राग को बढ़ाने वाली गाथा बात कही जाती है। जहां धर्म की देशना है वहां वैराग्य को बढ़ाने वाला उपदेश होगा। वैराग्य बढ़ेगा तो परम विजय की लोक व्यवहार में कुछ अन्तर आयेगा ही। ___आचार्य भिक्षु का एक मार्मिक दृष्टांत है। एक सेठ के दो पत्नियां थीं। प्राचीनकाल में बहुपत्नी प्रथा मान्य थी। सेठ मर गया। एक पत्नी, जो मात्र लौकिक दृष्टिकोण वाली थी, रोने लगी, विलाप करने लगी। वह बहत दिखावा करती। ऐसा लगता कि जैसे सारा शोक उसी को हआ है। दसरी पत्नी समझदार थी, धार्मिक थी, तत्त्व को जानती थी। उसने सोचा-यह संसार का स्वरूप है। संबंध होता है, बिछुड़ता है। संयोग होता है, वियोग होता है। वह समता में रही और सामायिक लेकर बैठ गई। अब लोग आते हैं, देखते हैं-एक तो रो रही है, विलाप कर रही है। दूसरी शांत बैठी है। लोगों ने कहा-'देखो, यह पतिव्रता नारी है। पति चला गया, कितना दुःख हुआ है। दूसरी पत्नी तो शांत बैठी है, लगता है इसको कोई दुःख ही नहीं है।' जो विलाप कर रही है, उसकी प्रशंसा हो रही है और जो शांत है, समभाव में है, उसकी निंदा हो रही है। इसका कारण क्या है? जहां लौकिक दृष्टि है वहां लोक-व्यवहार देखा जाता है, तत्त्व नहीं देखा जाता। जो व्यक्ति तत्त्व को जानता है, वह लोक-व्यवहार को गौण भी कर देता है। धर्म की बात लोकव्यवहार से भिन्न होती है। लौकिक व्यवहार में राग बढ़ाने वाली चर्चा होती है और धार्मिक भूमिका में वैराग्यवर्धक। वहां कहा जाता है कस्त्वं कुत आयातः का ते माता कस्ते तातः १०६
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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