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________________ समूचे समयसार में यह रहस्य उद्घाटित नहीं हो पाया। आचार्य कुन्दकुन्द की कोई बात ऐसी नहीं मिली जिससे इस असत्य को समर्थन मिलता तो खोजा गया उन आचार्य अमृतचन्द्र जी को जिनकी शैली में निश्चय की प्रधानता रहती है। पूरे समयसार की टीका में यह वाक्य नहीं मिला। मिला तो मात्र अन्त के सर्वविशुद्ध ज्ञानाधिकार में। वह भी इस अर्थ में नहीं है, जिस अर्थ में उसे बताया गया। आत्मन् ! आचार्य अमृतचन्द्र जी ने भी निमित्त-नैमित्तिक भावों की यथा समय स्वीकारता की है। द्रव्य, गुण, पर्याय का सिद्धान्त वह कुछ अलग से नहीं कह सकते हैं। तत्त्वार्थ सूत्र के ऊपर उन्होंने तत्त्वार्थ सार नाम का ग्रन्थ रचा है। सभी आचार्यों ने पर्यायों को क्रमभावि कहा है। पर्याय क्रम से उत्पन्न होती है। एक के बाद एक पर्याय उत्पन्न होती रहती है। जैसे समुद्र में लहर के बाद लहर उत्पन्न होकर नष्ट हो जाती है। पर्याय एक साथ बहुत से गुणों की तो उत्पन्न होती है किन्तु प्रत्येक गुण की पर्याय क्रम से ही उत्पन्न होती हैं। एक साथ सभी पर्यायें एक समय में उत्पन्न हो जाएँगी तो द्रव्य का परिणमन ही भविष्य में नहीं हो पाएगा जिससे द्रव्य के अभाव का प्रसंग आ जाएगा। आचार्यों ने एक स्वर में कहा है कि 'क्रमभाविनः पर्यायाः' अर्थात् पर्याय क्रम से उत्पन्न होती हैं। बस यही अभिप्राय आचार अमृतचन्द्र जी का इस क्रमनियमितात्मपरिणामैः' की पंक्ति में हैं। अर्थात् क्रम से निश्चित । बात को समझने में अन्तर है। उसका अर्थ अपने-अपने अभिप्राय से लगाने के ढंग में अन्तर है। आचार्य का कोई दुरभिप्राय नहीं है। दुरभिप्राय मात्र वक्ता का, पाठक का होता है। भो बन्धो! आप भी कह रहे हो पर्याय क्रम से निश्चित है और हम भी कह रहे हैं कि पर्याय क्रम से निश्चित है। जब बात एक ही है तो अन्तर कहाँ? अन्तर है अपने-अपने अभिप्राय में। आप अपनी कषाय की पुष्टि के लिए नया अर्थ निकालना चाह रहे हो और हम पर्वाचार्यों की दृष्टि अनुसार आगम कथित अर्थ कह रहे हैं। पर्याय क्रम से निश्चित है, इसका अर्थ है कि पर्याय क्रम से ही होती है, यह बात निश्चित है। पर्याय का क्रम से होना निश्चित है, ऐसे क्रम से निश्चित हुए अपने परिणामों से उत्पन्न होने वाला जीव, जीव ही है, अजीव नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उस पर्याय की जाति भी निश्चित हो गई। अर्थात् इस पर्याय के बाद यही पर्याय उत्पन्न होगी यह प्रतिबद्धता नहीं है। जैसे किसी टैंक में हमने पानी भर दिया और उसको निकालने के लिए एक टौंटी भी लगा दी। टौंटी ऐसी लगाई जिससे एक-एक बूंद निकले। तो यह निश्चित हो गया कि इसमें में से एक-एक बूंद ही पानी की निकलेगी। न कि यह निश्चित हो गया कि इससे पानी की सफेद बूंद ही निकलेगी। हम जैसा रंग उस टैंक में डालेंगे उस पानी की पर्याय उसी रंग की हो जाएगी। पहले जल की बूंद निकली। हमने उसमें लाल रंग डाल दिया अब लाल रंग की बूंद निकलेगी। फिर हमने काला रंग डाल दिया, अब काले रंग की बूंद निकलेगी। इस तरह पर्याय का परिवर्तन अनेक संयोगों के ऊपर निर्भर करता है। हम गर्म पानी कर देंगे तो गर्म पानी की बूंद निकलेगी। हम ऐसा द्रव्य, क्षेत्र, काल निर्मित कर दें कि पानी की परिणति ठण्डी हो जाय तो ठण्डे पानी की बूंद निकलेगी। इस तरह एक बूंद की पर्याय द्रव्य, क्षेत्र, काल के संयोगों से परिवर्तित होती है। इस परिणमन की कोई निश्चितता नहीं है।
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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