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________________ जो महापुरुष हुए हैं उनके बारे में अन्यत्र वर्णन कितना विचित्र है? क्या कभी गंगा नदी से पुत्र की प्राप्ति हो सकती है? विचार करो गंगा नदी स्त्री है या किसी नदी का नाम है? यदि स्त्री है तो उसे नदी क्यों कहा? और यदि नदी है तो किसी पानी में से अचानक कोई पुत्र उत्पन्न हो सकता है? जैन दर्शन में आचार्यों ने अनेक गुणों से सम्पन्न जन्हु नामक राजा की गंगा नाम की पुत्री होना बताया है। उसका पराशर राजा से विधिपूर्वक विवाह हुआ। उसके एक पुत्र की प्राप्ति हुई। उस पुत्र का नाम गांगेय था। यही बाद में भीष्म पितामह के नाम से ख्यात हुए। अन्य पुराणों में इस गांगेय की उत्पत्ति गंगा नदी से कही है। लोक में प्रचलित मान्यता जब बिना विवेक के स्वीकारी जाती हैं तो यही लोक मूढ़ता कहलाती है। टेलीविजन पर महाभारत दिखाई गई। उसमें भी ऐसी ही गंगा देवी को गंगा नदी में से निकलता दिखलाया गया। अविवेकी मोही जन मोह के वशीभूत हो सब देखते हैं। उन्हें सही-गलत का विचार कहाँ रहता है? मन को जो अच्छा लगे वही सही मान लेता है। और कभी-कभी तो इसलिए सत्य रूप में स्वीकार लेता है कि दुनिया ऐसा ही देख रही है, मान रही है। गंगा नदी में देवी रहती है। वह देवी देव गति की एक स्त्री है। इन देवी-देवताओं के पुत्र नहीं रहते हैं। गंगा नदी में देवी रहने से गंगा को ही देवता मान लिया और उसमें नहाकर अपने आप को पवित्र मान लिया। गंगा को तीर्थ बना दिया। भला! विचार करो, वास्तविकता क्या थी? और लोगों ने मान्यता क्या बना ली? गंगा आदि नदियों में व्यन्तर आदि देवों का आवास होता है। ये देव पर्वतों, वृक्षों, वनों में सर्वत्र निवास करते हैं। इनके रहने से उन सब स्थानों को देवस्थान मानकर भय से लोग उनकी पूजा करते हैं। ऐसी मूढता विश्व में सर्वत्र व्याप्त है। __गंगा नदी में रहने वाली देवी गंगा कहलाती है। लेकिन वह देवी भगवान् तो नहीं है। यदि हम पानी को पानी और देवी को देवगति का जीव मानते हैं तब तो यह विवेक ज्ञान है। अन्यथा अविवेक है। जैन पुराणों के पढ़ने से वास्तविक स्थिति का बोध होता है। भगवान आदिनाथ के समय की बात है। जब भरत चक्रवर्ती के सेनापति जयकुमार से सुलोचना का स्वयंवर विधि से विवाह हुआ था। जब सुलोचना गंगा नदी से हाथी पर बैठकर नदी पार कर रही थी तो सरयू नदी के संगम पर एक काली देवता ने उसे पकड़ लिया। उस काली देवी ने पूर्व भव के बैर से सुलोचना सहित हाथी को डुबाने का प्रयास किया। हाथी को डूबता देखकर तट पर खड़े हेमांगद आदि कुमार बड़े वेग से उस महानदी में कूद पड़े। इधर सुलोचना अर्हन्त नाम का उच्चारण मन में करने लगी। सुलोचना ने उपसर्ग समाप्त न होने तक आहार, शरीर और भोग-उपभोग के सभी पदार्थों का त्याग कर दिया। उस समय सुलोचना गंगा देवता की तरह बहुत लोगों के साथ गंगा नदी में डूबती चली जा रही थी। तभी गंगा कूट पर रहने वाली गंगा देवता का आसन कंपा। और उसने सबको तट पर लाकर छोड़ दिया। दुष्ट कालिका को खूब बुरा भला कहा और गंगा देवता ने सुलोचना को जयकुमार से मिला दिया। तत्काल गंगा देवी ने विक्रिया से गंगा के तट पर समस्त सम्पदाओं से सहित एक महल बनाया और रत्न सिंहासन पर बिठाकर सुलोचना की पूजा की। और कहने लगी- हे सुलोचने! आपने पूर्व भव में जो मुझे पंच नमस्कार मंत्र दिया था, उसके प्रभाव से मैं इन्द्र की वल्लभा रानी गंगा देवता हुई हूँ। ___इसी तरह हनूमान्, सुग्रीव जैसे महापुरुषों को बंदर कहना मूर्खतापूर्ण है। समझ में नहीं आता कि लोग बंदर को भगवान् कैसे मान लेते हैं? भगवान् बंदर है या बंदर भगवान् है, विवेक से विचार करो। जब तक ऐसी अनेक मिथ्या मान्यताओं को दूर करके हृदय का अंधकार नष्ट नहीं होता तब तक सम्यक्त्व रूपी सूर्य का उदय कैसे होगा?
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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