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________________ महाव्रतों का भार धारते निज आतम में बन अति नम्र और शिष्य समुदाय पालते महाबली जो पूरी उम्र । भव दुख रोग विनाशन हेतू दिव्य वैद्य बनकर आए उनसे भक्त प्रार्थना करके बोधि-निरोग-शक्ति पाए ॥ ८ ॥ अन्वयार्थ : [ जो ] जो [ महाबली ] महाबलवान् [ वदस्स ] व्रत के [ सिस्सस्स ] और शिष्य के [ भारं ] भार को [विणीदभावेण ] विनीत भाव से [ धरेदि ] धारण करते हैं [ सो ] वह [ भवदुक्खणासी ] संसार दुःख का नाश करने वाले [ दिव्ववेज्जो ] दिव्य वैद्य हैं [ खलु ] निश्चित ही वह हमें [ आरोग्गबोहिं ] आरोग्य बोधि और [ सत्तिं ] शक्ति को [ देउ ] देवें । भावार्थ : जैसे कोई दैवीय वैद्य रोगी का दुःख दूर कर देता है वैसे ही आचार्य देव संसार दुःख को नाश करने वाले वैद्य हैं। वैद्य स्वयं औषधि के भार को रखता है वैसे ही आचार्य स्वयं व्रतों के भार को धारण करते हैं । जैसे वैद्य अपने रोगी की चिकित्सा नम्र बनकर करता है वैसे ही शिष्य को और स्वयं अपने व्रतों को जो नम्रभाव से पालनपोषण करते हैं, वह बहुत ही सहिष्णु होते हैं । महाबलवान् और महान् धीर वह आचार्य हमें शक्ति प्रदान करें और आरोग्य लाभ तथा बोधि प्रदान करें।
SR No.034024
Book TitleTitthayara Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages207
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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