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________________ (३) उद्दायन राजा की कथा एक बार अपनी सभा में सम्यग्दर्शन के गुणों का वर्णन करते हुए सौधर्मेन्द्र धर्म चर्चा कर रहे थे उन्होंने वत्स देश के रौरकपुर नगर के राजा उद्दायन महाराज के निर्विचिकित्सित गुण की बहुत प्रशंसा की, निर्विचित्सा गुण में उस राजा की तुलना में कोई नहीं। उसकी परीक्षा करने के लिये एक वासत्र नामका देव आया। उसने विक्रियासे एक ऐसे मुनिका रूप बनाया जिसका | शरीर उटुम्बर कुष्ठ (झरते हुए कष्ट) रोग से सहित था। अपने घर के निकट आये हुए अतिथि का राजा ने भक्तिपूर्वक पड़गाहन | किया। उस मुनि ने विधिपूर्वक खड़े होकर उसी राजा उद्दायन के हाथसे दिया हुआ समस्त आहार और जल माया से ग्रहण किया। पश्चात् उसी स्थान पर अत्यन्त दुर्गन्धित वमन कर दिया। दुर्गन्ध से परिवार के सब लोग भाग गये, परन्तु राजा उद्दायन अपनी रानी प्रभावती के साथ मुनि की परिचर्या करता रहा। मुनि ने पुनः उन दोनों के ऊपर ही वमन कर दिया। हाय-हाय मेरे द्वारा विरुद्ध आहार दिया गया है इस प्रकार अपनी निन्दा करते हुए राजा ने क्षमायाचना करते हुए मुनि का प्रक्षालन किया। मुनिराज का शरीर रत्नत्रय से पवित्र है वह घृणा के योग्य नहीं है यह भावना देखकर अन्त में देव अपनी माया को समेटकर असली रूप में प्रकट हुआ और पहले का सब समाचार कहकर तथा राजा की प्रशंसा कर स्वर्ग चला गया। उद्दायन महाराज वर्धमान स्वामीके पादमूल में तप ग्रहण कर मोक्ष गये और रानो प्रभावती तप के प्रभाव से ब्रह्मस्वर्ग में देव हुई। ... धम्मकहा 13 विद्यावान लोक में स्वजन और परजन से प्रशंसित होता है। ऐसा पुत्र मुकुटों में मौलि के समान अग्रिमस्थान पर ही रहता है । अ. यो. ॥
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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