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________________ धम्मका a 101 इसी प्रकार श्री गुणधरआचार्य देव ने कषायपाहुड़ ग्रन्थ की रचना की। ये दोनों ही सिद्धांत ग्रन्थों के ऊपर वर्तमान में आचार्य श्री वीरसेनदेव के द्वारा विरचित क्रमशः धवला टीका और महाधवला (जयधवला) टीका उपलब्ध है। बहुश्रुत भक्ति के परिमाण से ही आचार्यों के द्वारा महाशास्त्रों की रचना की गई है। इसी प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द देव के द्वारा समयप्राभृत, प्रवचनप्राभृत, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड, भक्तिसंग्रह आदि शास्त्रों की रचना की गई। इसी प्रकार आचार्य पूज्यपाद देव के द्वारा सर्वार्थसिद्धि, जैनेन्द्रव्याकरण, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश इत्यादि ग्रन्थों की रचना की। बाद में अकलंक देव आदि अनेक आचार्यों का बहुश्रुत भक्ति का परिणाम यह ग्रन्थ रचना के बहाने से दिखाई देता है। इन आचार्यों की भक्ति श्रुतभक्ति की भावना से सदा करनी चाहिए । न केवल उनकी परोक्ष में भक्ति ही करनी चाहिए किन्तु वर्तमान काल में उपलब्ध सभी सिद्धांत, अध्यात्म न्याय , व्याकरण आदि सभी शास्त्रों को जो जानते हैं उनकी भक्ति भी निरन्तर करनी चाहिए। सत्य ही है-"जो भी शास्त्र वर्तमान में उपलब्ध हैं उन सब जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड आदि शास्त्रों को जो जानता है उनको मैं बहुत भक्ति से नमस्कार करता हूँ । यह बहुश्रुत भक्ति भावना है।" इसी तरह "जो धवला आदि महाबन्ध श्रुत ज्ञान रूप सिद्धान्त को जानकर के शुद्धात्मा का कथन करने वाले समयसार का ध्यान करते हैं उन उपाध्याय परमेष्ठी की में वन्दना करता हूँ ।" जो बहुश्रुत के जानकार है वह उपाध्याय परमेष्ठी के समान होते हैं इसलिए बहुश्रुत भक्ति में उपाध्याय परमेष्ठी की भक्ति की गई है यह जानना । נננ गुरु सेवा करने से, माता-पिताओं की आज्ञा मानने से और स्वयं के ज्ञानावरण के क्षयोपशम से विद्या उत्पन्न होती है। विद्या प्राप्ति का कोई चौथा कारण नहीं है ॥ ३ ॥ अ.यो.
SR No.034023
Book TitleDhamma Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranamyasagar
PublisherAkalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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