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________________ के रंग अनंत दिव्य शक्तियों की द्योतक है। 'भक्तांबर स्त्रोत' अधिक जानकारी हेतु हमारा लक्ष भक्तामर पढ़े। गुप्त काल: ईसा की पहली शताब्दी में कलिंग के राजा खारावेल ने जैन धर्म स्वीकार किया। ईसा के प्रारंभिक काल में उत्तर भारत में मथुरा और दक्षिण भारत में मैसूर जैन धर्म के बहुत बड़े केंद्र थे। पांचवीं से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण के गंग , कदम्बु, चालुक्य और राष्ट्रकूट राजवंशों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन राजाओं के यहां अनेक जैन मुनियों, कवियों को आश्रय एवं सहायता प्राप्त होती थी। ग्याहरवीं सदी के आसपास चालुक्य वंश के राजा सिद्धराज और उनके पुत्र कुमारपाल ने जैन धर्म को राज धर्म घोषित कर दिया तथा गजरात में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। मुगल काल : इतिहास करो के मत है कि कि अकबर , जहांगीर, और शाहजहां: तीन सम्राटों के तहत शाही मुगल दरबार में संस्कृत मुख्य रूप से विकसित हुई इसका एक बहुत बड़ा रहस्य है । वैदिक संस्कृती का ब्राह्मण समाज सदा से सत्ता की चाटुकार - पूजारी रहा है और बदले में सत्ता के तमाम लाभ प्राप्त करता रहा है । मुगल काल का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों ने अपनी चाटुकारिता तथा लोभ के वश बादशाह अकबर को भी विष्णु का अवतार घोषित कर रखा था और बदले में अकबर ने ब्राह्मणों को न केवल जज़िया से मुक्त कर रखा था बल्कि उन्हें राजकीय संरक्षण भी दिया था. | ब्राह्मणों ने संस्कृत में रचित तत्कालीन कई रचनाओं में सिद्ध किया गया है कि अकबर विष्णु का अवतार था. अकबर के समर्थन में संस्कृत में लिखी गई एक रचना में अकबर की प्रशंसा में उसकी तुलना विष्णु के साथ की गई है. इस रचना का भावार्थ कुछ इस तरह है: "जिस तरह से वेदों में ब्रह्म की व्याख्या जगत से परे और अपरिवर्तनशील की है , उसी तरह पृथ्वी के महान शासक अकबर ने गायों और ब्राह्मणों की सुरक्षा करने के लिए जन्म लिया है.. गायों की रक्षा हेतु भगवान विष्णु एक विदेशी परिवार में अकबर के रूप में अवतीर्ण हुए. ऐसे परिवार में, जो कि गायों और ब्राह्मणों को नुकसान पहुंचाना पसंद करते थे , जन्म लेने के बावजूद अकबर गायों और ब्राहमणों के रक्षक बने इसलिए वह स्वयं भगवान विष्णु के अवतार
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
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