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________________ धन अर्जित करने प्रवति के प्रभाव ने भारतिय संस्कृति को भृष्ट से भृष्टतर बना दिया। आज इस भृष्ट पद्धति आगम -रिती -रिवाज के रुप में प्रचलित है और हम यह जानकर की वर्तमान की ढो रहे है। अतः यह जानना अति आवश्यक है कि वह भृष्ट पद्धति आगम -रिती -रिवाज क्या मेरा यह सविनय निवेदन है की युग परिवर्तन हो रहा है और यही उचित समय है जबकि जैन धर्म के विद्धवानो को अपने "अपने मस्तिष्क के आराम कोष अर्थात भेड चाल” से बहार आकर जैन धर्म की सच्चे ज्ञान को प्रचार प्रसार करे और अपने जीवन को धन्य बनाए / लेख में अशुद्धि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ सुझाव आमंत्रित है
SR No.034017
Book TitleJain Dharm Itihas Par Mugal Kal Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year2017
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size499 KB
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