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________________ शिक्षाप्रद कहानियां युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नजर नहीं आया। 63 ३०. मान कषाय हमारे शास्त्रों में चार कषाय बतलाई गई हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। ये चारों ही बड़ी खतरनाक होती हैं। इनके कारण ही हमारी शुद्ध स्वभावी आत्मा कलुषित हो जाती है। और विभिन्न प्रकार के कष्टों का अनुभव करती है। तथा सहजता से प्राप्त होने वाले सुख को भी प्राप्त नहीं होने देती। यहाँ हम मान कषाय का एक दृष्टान्त देखेंगे। जो कि, हीनाधिक मात्रा में हम सब में होती है। प्राचीन समय की बात है । उस समय हमारे देश पर मुगलों का शासन था। गर्मी का मौसम था। भरी दोपहरी में एक नवयुवक जंगल के रास्ते से कहीं जा रहा था। अचानक उसे जोरों की प्यास लग गई। प्यास से व्याकुल होकर वह इधर-उधर देखने लगा। लेकिन, उसे कहीं पानी दिखाई नहीं दिया। कुछ और आगे चलने पर उसे एक कुआँ दिखाई दिया। वह तुरन्त कुएं की ओर भागा। वहाँ पहुँचकर उसने कुएं में झाँककर देखा। कुआँ पानी से लबालब भरा था। कुएं की मेड़ पर रस्सी से बँधी हुई बाल्टी भी रखी थी, लेकिन पानी निकालने वाला वहाँ कोई नहीं था। उसने सोचा, पानी निकालूँ और प्यास बुझाऊँ। नवयुवक था किसी अमीर आदमी का पुत्र । तुरन्त उसकी मान कषाय जागृत हो गई और मन ही मन सोचने लगा, अरे! किसी ने देख लिया तो क्या होगा ? सारी अमीरी धरी रह जाएगी। लोग कहेंगे देखो, अमीरजादा होकर खुद कुएं से पानी निकालकर पी रहा है। और उसने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह स्वयं पानी निकालकर नहीं पिएगा। ऐसा करता हूँ यही बैठ जाता हूँ। अवश्य यहाँ कोई न कोई आएगा। मैं उसी से पानी निकलवा कर पी लूँगा । कुछ ही समय बाद वहाँ प्यास से आकुल-व्याकुल एक दूसरा नवयुवक आया। उसने भी देखा कुएं में पानी है, रस्सी है, बाल्टी है और
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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