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________________ 51 शिक्षाप्रद कहानिया लालची होते हैं, अतः ब्राह्मण साधु के दोहे में 'लड्डू-घी' का प्रयोग दिखाई दिया। इसी प्रकार क्षत्रिय साधु के दोहे में 'शमशेर' 'कटार' और 'ढाल' का तथा वैश्य साधु के दोहे में 'डंडी' और 'पलड़े' का उल्लेख था। यह बात शुद्र साधु की है, उनके दोहे में 'चाकरी' और 'मुजरा' शब्द आए हैं। रही बात पाँचवें साधु की, तो वह वर्णसंकर होने के कारण अपनी जाति छिपाना चाहता है, इसीलिए 'जाति पाँति पूछे नहीं कोय' की रट अपने दोहे में लगा रहा है। बीरबल की बुद्धिमता से बादशाह बहुत ही प्रभावित व खुश हो गये। इस सन्दर्भ में कहा भी जाता है कि कुलप्रसूतस्य न पाणिपद्म न जारजातस्य शिरोविषाणम्। यदा-यदा मुञ्चति वाक्यबाणं तदा-तदा जातिकुलप्रमाणम्॥ २६. दया का महत्त्व किसी गाँव में दो मित्र रहते थे। उनके नाम थे- दयालु और कृपालु। संयोगवश कहो या भाग्यवश वे दानों जो भी काम करते, वह काम बिगड़ जाता। उन्होंने नौकरी की तो वह छूट गई, मकान बनाने लगे तो दीवारें ढह गई, बच्चों को पढ़ने स्कूल भेजा तो वे बीमार पड़ गए। इस तरह वे जो भी काम करते उसमें उन्हें निराशा और असफलता ही हाथ लगती। एक दिन वे दोनों दु:खी होकर एक पण्डित जी के पास गए और बोले पण्डित जी, हमारा भाग्य बहुत खराब है, हम जो काम करते हैं, वह बिगड़ जाता है और उन्होंने सारी आपबीती पण्डित जी को सुनाई और अन्त में बोले- आप कृपा करके हमें कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे हमारा भाग्य सुधर जाए और हमें सफलता प्राप्त हो। यह सुनकर पण्डित जी बोले- तुम दोनों तीर्थयात्रा करो। इससे तुम्हारा भाग्य भी सुधरेगा और सफलता भी मिलेगी। दोनो मित्र अपने-अपने घर गए और आवश्यक सामान (कपड़े, रूपये पैसे दवाई आदि) लेकर चल दिए तीर्थयात्रा पर।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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