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________________ शिक्षाप्रद कहानिया 25 आज ऐसी भयानक एवं विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई है किलोग बात-बात पर गुस्सा करते दिखाई देते हैं। जरा-जरा सी बात पर बड़े तो क्या छोटे-छोटे बच्चे तक न जाने क्या-क्या कर देते हैं? जिसकी जानकारी हमें प्रतिदिन विभिन्न समाचार पत्रों व विभिन्न संचार-साधनों से मिलती रहती है। पढ़कर, सुनकर और देखकर बड़ा ही आश्चर्य होता है कि आखिर हो क्या गया है इस संसार में जो इतनी भयंकर स्थिति आ गई है? और अगर हम इसके मूल में जाकर देखें तो मालूम होता है कि इस प्रतिस्पर्धा के युग में सभी एक-दूसरे से द्वेष करते हुए दिखाई देते हैं। और इसी द्वेष का प्रतिफल है- गुस्सा, क्रोध जिसके दर्शन हर किसी में सुलभ है। यहाँ कोई यह कह सकता है कि आखिर गुस्सा भी करना पड़ता है। हमारे यहाँ दण्ड-व्यवस्था का भी विधान किया गया है, उसमें गुस्सा भी करना ही पड़ता है। हाँ यह बात ठीक है, लेकिन यह भी हमारे यहाँ विधान किया गया है कि- 'कोपोऽस्तु क्षणभङ्गुरः, विद्वेषो न कदाचन।' अर्थात् गुस्सा ऐसा होना चाहिए कि आया और गया। इसके लिए एक दृष्टान्त भी दिया जाता है कि- 'अतिथि कौन-सा अच्छा लगता है? कि जो आया और गया। अगर अतिथि ज्यादा दिन टिक जाए तो फिर वो अतिथि नहीं रहता। इस सन्दर्भ में कहा गया है कि श्वसुरगृहनिवासः स्वर्गतुल्यो नराणाम्, यदि वसति दिनानि त्रीणि पञ्चाथ सप्त। दधिमधुघृतशाकक्षीरसारप्रवाहः तदुपरि, दिनमेकं पादरक्षा प्रयोगः॥ अतः वही गुस्सा ठीक होता है, जो थोड़ी देर के लिए आया और फिर चला गया। लेकिन जब यही गुस्सा बड़ा हो जाए तो द्वेष का रूप धारण कर लेता है, जो कि बड़ी ही खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर देता है। अतः हमें कभी भी द्वेष नहीं करना चाहिए। एक बात और है कि आपके द्वेष करने से शायद ही दूसरे का कुछ बुरा हो चाहे न हो, लेकिन उस द्वेष के कारण द्वेष करने वाला स्वयं अन्दर ही अन्दर कुलबुलाता रहेगा। शान्त नहीं रह सकेगा। और अपने ही अन्दर अनेक
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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