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________________ 203 शिक्षाप्रद कहानिया इस प्रकार और भी कई बातें उन लोगों ने कही। यह सब सुनते-सुनते कुम्हार जब काफी परेशान हो गया तो वह गुस्से से बोलाबस, चुप करो तुम सब बहुत हो गया। अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा। जो मेरे मन में आएगा मैं वही करूँगा। और वह दोनों गधे के साथ पैदल-पैदल चल दिए बाजार की ओर। मित्रों! वास्तव में यही दशा है संसार की। नहीं करोगे तो लोग कहेंगे कुछ करता नहीं है करोगे तो कहेंगे क्यों करता हैं? इसलिए कहा जाता है कि 'सुनो सबकी करो मन की।' मैं यहाँ यह भी कहना चाहता हूँ कि मन की भी करो लेकिन, बुद्धि पूर्वक, विवेक पूर्वक क्योंकि सबसे बड़ा संसार तो यह मन ही है। यह मंजिल पर पहुँचाता भी है और भटकाता भी है। इसका अनुभव हम सभी करते हैं। ९५. संतोष ही सुख का मूल है एक बार जंगल में एक कोयल का बच्चा जोर-जोर से रो रहा था। उसके रोने का कारण यह था कि अभी कुछ समय पहले उसने मोर के बच्चे के सुन्दर एवं सतरंगी पंख देखे थे। इसलिए उसे अपने काले-कलूटे पंखों से बड़ी चिढ़ हो रही थी। उसे भी मोर के बच्चे जैसे पंख चाहिए थे। कोयल ने जब अपने बच्चे को रोते हुए देखा तो उसका हृदय व्यथित हो गया और उसने बच्चे से रोने का कारण पूछा। कारण जानकर माता ने अपने नन्हे-मुन्ने को समझाने का खूब प्रयास किया। लेकिन, बच्चा था कि माना ही नहीं थक हारकर कोयल मन ही मन कुछ सोच कर बोली- 'अच्छा! तुम मेरे साथ चलो मयूरी के पास।' उसने सोचा अवश्य ही वहाँ पर कुछ मयूर पंख पड़े होंगे। शायद उन्हें प्राप्त कर बच्चे का मन बहल जाए और वह रोना बंद कर दे। दोनों चले गये मयूरी के पास। लेकिन, वहाँ पर पहुँच कर कोयल के आश्र्चय का ठिकाना नहीं रहा वहाँ दूसरा ही तमाशा हो रहा था। मयूरी का बच्चा मचल-मचल कर रो रहा था। वह अपनी माँ से कह रहा था मुझे अपनी भौण्डी एवं डरावनी आवाज बिल्कुल पसंद नहीं है। मुझे कोयल जैसी मीठी एवं सुरीली आवाज चाहिए। मयूरी उसे बार-बार समझाने का प्रयास कर रही थी कि प्रकृति ने हमें जो दिया है हमें उसी में खुश रहना चाहिए। लेकिन,
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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