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________________ शिक्षाप्रद कहानिया ४. पाप का मूल बहुत समय पहले की बात है। हमारे देश में एक बहुत ही सत्यप्रिय, धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और प्रजा के सुख-दुख को अपना ही समझने वाले राजा थे। एक दिन वह चिन्तन करने लगे कि आखिर में ऐसा कौन-सा कारण है कि मनुष्य न चाहते हुए भी पाप कार्य करने को मजबूर हो जाता है? यह जानने के लिए वे बहुत ही उत्सुक हो गए और सोचने लगे कि इस समस्या का समाधान कैसे हो? यह सोचते-सोचते वे अपने राजगुरु के पास गये और अपनी जिज्ञासा का समाधान उनसे पूछा। यह सुनकर गुरुदेव बोले- राजन्, इस समस्या का समाधान तो आपको वनवासिनि ज्ञानमती ही बता सकती हैं, अतः आप उनके पास जाइए। ज्ञानमती ज्ञान के साथ-साथ रूप और यौवन से भी सम्पन्न थीं। इतना सुनना था कि राजा तो चल दिए वन की ओर तथा पहुँच गए ज्ञानमती के पास और रख दी उनके सामने अपनी जिज्ञासा। यह सुनकर ज्ञानमती बोली- राजन्, आपकी जिज्ञासा का समाधान तो आपको मिल जाएगा, लेकिन इसके लिए कुछ दिन आपको यहीं रहना पड़ेगा। यह सुनकर राजा बोला- लेकिन यह कैसे सम्भव हो सकता है? मेरे बिना राज-काज के कार्य कौन सम्पन्न करेगा? वहाँ पर तो अव्यवस्था हो जाएगी। तब ज्ञानमती बोली- चाहे जो भी हो वह आपकी समस्या है, बस मैं तो इतना जानती हूँ कि अगर आपको अपनी जिज्ञासा का समाधान चाहिए तो कुछ दिन यहाँ अतिथि बनकर रहना ही पड़ेगा इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं। ___ अब राजा सोचने लगे आखिर करूँ तो क्या करूँ? काफी देर सोच-विचार कर अन्त में उसने निर्णय किया कि ठीक है मैं यहाँ रुक जाता हूँ। और उन्होंने अपने राजमहल में भी सूचना भिजवा दी कि मैं
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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