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________________ 148 शिक्षाप्रद कहानियां "उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥” अर्थात् परिश्रम के द्वारा ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल कल्पनाओं से नहीं। क्या कभी सोते हुए शेर के मुख में हिरणों को घुसते हुए देखा है? वर्तमान में हमारे समक्ष जितनी भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं चाहे वो भौतिकता संबंधी हैं या आध्यात्मिकता संबंधी, सभी परिश्रम की ही देन है। संसार में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने परिश्रम के बल पर ही जीवन में सिद्धि प्राप्त की है तथा ऐसे कार्य सम्पन्न करके दिखलाए हैं जिनकी कभी हमने कल्पना भी नहीं की थी। अतः यह स्पष्टतया कहा जा सकता है कि जीवन में परिश्रम की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसीलिए कहा भी जाता है कि * उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः । * देवेन देयमिति कापुरुषाः वदन्ति । * यत्ने कृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोषः । ६५. किसका कैसा नाता रे एक श्रेष्ठ पुत्र प्रतिदिन एक महात्मा जी के प्रवचन सुनने जाता लेकिन वह प्रवचन समाप्त होने से पहले ही वहाँ से उठकर चला आता था। एक दिन मुनि - महाराज ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा। था, श्रेष्ठी पुत्र बोला- महात्मा जी ! मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हूँ यदि घर पहुँचने में थोड़ी-सी भी देर हो जाती है तो वे मुझे ढूँढ़ने निकल पड़ते हैं तथा मेरी पत्नी और रिश्तेदार सभी मेरे लिए अपने प्राण बिछाते हैं। आप तो संसारियों के संबंध को मिथ्या बतलाते हैं, किन्तु आपको कोई अनुभव तो है नहीं। इसलिए आप कहते हैं इस संसार में
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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