SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 124 शिक्षाप्रद कहानियां के ढेर सम्भाल रहा है।, वह बोला - सेठ जी अब मैं दूध नहीं बेचता। अब मेरे पास धन की कोई कमी नहीं है अतः जाओ! कहीं और दूध ढूँढों। इसके बाद सेठ हलवाई की दूकान पर गया । वहाँ भी उसे वही उत्तर मिला। इसके बाद सेठ जहाँ भी गया उसे यही उत्तर मिला । सब यही कहते कि - अब सबके पास धन के ढेर लगे हैं, अब रूपए की या धन की कोई कीमत नहीं हैं, यह देख - सुनकर सेठ बहुत असहाय, निराश, हताश और उदास हो गया। सेठ ही नहीं शहर के अन्य लोगों की हालत भी ऐसी ही हो गयी थी। क्योंकि सबके काम-धन्धे बन्द हो गए। रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं मिलनी बन्द हो गयी। लोग विलाप करते हुए कह रहे थे कि - सिर में मारे इस धन को जिससे कुछ मिलता ही नहीं। क्या इस धन को हम चांटे? क्या इस धन को हम खाएं या इसके वस्त्र पहनें ? यह सब देख-सुनकर सेठ सोचने लगा- यह तो बहुत ही विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी है । इसका तो तुरन्त कुछ उपाय करना चाहिए। वरना सब मर जाएंगे। और वह दोबारा ज्योतिषी के पास गया। और ज्योतिषी के सामने सारी घटना सुना दी। ज्यातिषी बोला- इसका जो कुछ भी उपाय है वह लक्ष्मी जी ही तुम्हें बता सकती हैं। हो सकता है वे अपना वरदान वापस ले लें और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाए। अत: तुम पुनः लक्ष्मी जी का आह्वान करो वे अवश्य ही प्रकट होंगी। सेठ जी ने पुनः पूजा-अर्चना की। लक्ष्मी जी फिर से प्रसन्न होकर प्रकट हो गयी। और जैसे ही वे प्रकट हुई सेठ ने निवेदन कियाहे लक्ष्मी माता! हमें अधिक धन नहीं चाहिए । कृपया हमें फिर से पहले जैसे साधारण बना दीजिए । लक्ष्मी जी बोली- तुमने तो बड़े चाव से अधिक धन का वर माँगा था। अब क्या हो गया, जो तुम उसे लौटाते हो ?
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy