SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 116 शिक्षाप्रद कहानिया सब सोचते-सोचते उसने अपनी पत्नी को बुलाकर एक डिब्बा दिया और स्वयं स्वर्ग सिधार गया। यह सब देखकर किसान की पत्नी दुःखी होकर विलाप करने लगी। उसके रोने-धोने की आवाज सुनकर पड़ोसी एकत्रित हो गए और उन्हें समझने में तनिक भी देर नहीं लगी कि किसान का परलोक गमन हो गया है। वे सब उसको सांत्वना देने लगे और कहने लगे कि अब विलाप करने से कोई फायदा नहीं, जो होना था वो तो हो गया। अब तो आप इनकी अन्तिम यात्रा की तैयारी करिए। यह सुनकर उसने किसान का दिया हुआ डिब्बा सम्भालते हुए घर के अन्दर रख दिया और लगी तैयारी करने। देखते ही देखते पड़ोसियों ने सब समान जुटा दिया। और ले गए किसान को अन्तिम यात्रा के लिए। एक दिन जब सब काम निपट गए तो किसान की पत्नी सोचने लगी कि- मेरे पति ने मरते समय मुझे एक डिब्बा दिया था, अवश्य ही उसमें कुछ होगा। और यही सोचते हुए उसने डिब्बे को खोला तो उसमें तीन पर्चियाँ निकलीं। उसने तुरन्त एक पर्ची उठाई और खोली। वह लिखना-पढ़ना जानती थी इसलिए उसे पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हुई। उस पर लिखा था- 'हमेशा दूसरों की भलाई करनी चाहिए। यह पढ़कर उसने मन ही मन संकल्प लिया कि- 'मैं सबका भला सोचूँगी। और यथासम्भव सभी की मदद करूँगी।' अब उसने दूसरी पर्ची खोली। उसमें लिखा था कि- 'मेरे मरने के बाद मेरा खेत मेरी पत्नी को मिले और वो उसमें खेती करे।' अब उसने फिर मन ही मन में संकल्प किया कि 'अगर मेरे पति की यही इच्छा थी तो मैं अवश्य ही यह काम करूंगी।' । अब उसने तीसरी पर्ची खोली जो कि पहले की दो पर्चियों से कुछ अधिक बड़ी और मोटी थी। इस पर्ची में तीन सौ रुपये निकले जो कि एक कागज में लिपटे हुए थे। तथा लिखा हुआ था कि इन रूपयों को किसी अच्छे और नेक काम में लगाना।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy