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________________ 100 शिक्षाप्रद कहानिया आया तो शिष्य ने कहा- 'मित्र यदि कुछ दिनों के लिए आप अपनी मणि मुझे उधार दे सको तो मेरा बड़ा ही उपकार हो। मुझे इसकी बड़ी आवश्यकता है।' इतना सुनना था कि मणिकण्ठ बात को इधर-उधर घुमाते हुए बोला- 'मित्र! आज मुझे एक विवाह समारोह में जाना है, अतः मैं बहुत जल्दी में हूँ। आज तो मैं आ भी नहीं रहा था, लेकिन मैंने सोचा कि कहीं तुम मेरी प्रतीक्षा न करते रहो, इसलिए बताता जाऊँ कि आज मैं नहीं आ सकूँगा। और हाँ कल अवश्य ही मैं तुम्हारी बात पर गौर करूँगा।' और इतना कहकर मणिकण्ठ वहाँ से ऐसा नौ-दो-ग्यारह हुआ कि पुनः कभी लौटकर नहीं आया। शिष्य तो चाहता ही यही था। इसीलिए कहते हैं कि- 'उधार प्रेम की कैची है।' मित्रों! इस कहानी से हमें प्रमुख दो शिक्षाएं मिलती हैं। 1. एक तो यह कि गुरु का महत्त्व हमारे जीवन में बहुत अधिक होता है। कहा जाता है कि कला बहत्तर पुरुष की, जामे दो सरदार। एक जीव की जीविका, दूजा जीवोद्धार॥ जीविका की कला सिखाने वाले गुरु तो आज पग-पग पर कुछ दान-दक्षिणा देकर आसानी से सुलभ हो जाते हैं। और हम उन्हें ही गुरु मान भी लेते हैं। लेकिन वास्तविक गुरु तो वही होता है जो हमें उक्त दोनों कलाओं में पारंगत करे। अतः हमें गुरु बड़ा ही सोच-समझकर बनाना चाहिए। 2. माता-पिता और गुरु के बाद मैं समझता हूँ कि अगर हमारे जीवन में किसी का महत्त्व है तो वह है- 'मित्र का!' अतः हमें मित्र भी खूब सोच-समझकर बनाना चाहिए। ये नहीं कि अगर आपका सरल स्वभाव है तो आप जिस-किसी को मित्र बना लो। और बाद में पछताते रहो। अतः यहाँ भी हमें अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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