SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है तो बहुत कठिन । वह है भी तो बड़ा जिद्दी । फिर भी चलो सब चलते हैं। पूरा प्रयत्न करेंगे उसे लौटा लाने का । अब तो आत्म हम समझायेंगे तो वह जरूर मान जायेगा । हमारी बात कभी उसने टाली है भला । और मैं तो उनके चरणों में लिपट जाऊंगी - रोऊंगी, घोऊंगी - देखूंगी कैसे नहीं. वापिस आते वह और तीनों पहुंच गये जंगल में... मुनिराज ब्रह्मगुलाल शिला पर बैठे हैं... बेटा तूने यह क्या किया- कहां तेरी यह जवानी, कहां यह कठिन तपस्या । छोड़ दे इस वेष को और चल हमारे साथ "यह वह वेष हैं जो धारण करके छोड़ा नहीं जाता। और मैं तो बहुत दिनों से इस दिन की प्रतीक्षा में ही था। बड़े भाग्य से मिला है यह अवसर कल्याण ही करूंगा। ऐसा मेरा निश्चय है। हंसी हंसी में वेष रखा था न तूने । अब यह हंसी छोड़ दे । और नरूला मुझे और चल अपने घर 18 किसका घर - कैसा घर ? अब तो हम जा रहे हैं अपने घर । हमने राह पकड़ ली है अपने घर की । मोक्ष ही हमारा घर है। वहीं हमें अब जाना है ।
SR No.033236
Book TitleRup Jo Badla Nahi Jata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy