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________________ और मुनि ब्रह्मगुलाल लौट चले जंगल को ... य महाराज, आपने मेरी V राजन , मुझे वह ऑरवे रवोल दी। मेरा | मिल गया जिसे हृदय अब शांत हो गया। पाकर अब किसी मैं आपसे अति प्रसन्न हूँ। चीज की भी इच्छा आपकी कला की जितनी नहीं रही। अब प्रशंसा की जाये थोड़ी है। तो में बंधन मुक्त जो चाहो मेरे से मांगलो हूँ और रहूंगा,क्या और यहां प्रसन्नता से रवा है इनसब रहो। में SALA LI STHA IYA 20 और इधर ब्रह्मगुलाल के घर में... यह क्या गजब हो गयामेरे पुत्र ने यह क्या कर डाला, अब हमारा क्या होगा बड़ा निष्ठुर निकला मेरा लाल। मैं क्या करूं, मैं तो लुट गई। आपही करो न कुछ। चलो उसे समझा बुझाकर वापिस लौटा लायें पिता जी, मेरी तो सारी जिन्दगी पड़ी है, कैसे कटेगी यह। पति होते हुए भी मैं तो विधवा हो गई। आप ही उन्हें समझा कर वापिस ला सकते हैं। चलो ना। 17
SR No.033236
Book TitleRup Jo Badla Nahi Jata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size7 MB
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