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________________ उत्तम तप धर्म बहुत पहुंचे हुए महात्मा दीखते है ? क्यो न इनकी शरण ग्रहण कर लूँ कल्याण हो जायेगा मेरा! अहा हा हा! मनचाहा मिल गया! सामने परमपूज्य दिगम्बर साधु कैसे तपस्वी कैसे सौम्यमूर्ति आत्म कल्याण के • लिये मुझे और चाहिये भी क्या ? चलूं उनके चरणो में ! और इस तरह दोनों भाइयो ने घर छोड़ा राज्य घोड़ा वैरागी बने ! परन्तु मार्ग पकड़ा अलगअलग बारह वर्ष बाद.... धर्म के लक्षण महाराज! कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिये। घर छोड़कर आया हूँ। आत्म कल्याण का इच्छुक हूँ! बहुत उत्तम विचारा राजपुत्र भगवा वस्त्र धारण करो यहीं रहो तुम्हारा कल्याण होगा ! दुनियां की धधकती आग से निकल कर आपके चरणों में आ गया हूं। मुझे उबारिये ! मुझे भी अपने जैसा बना लीजिये ! गुरूदेव ! बहुत समय हो गया भाई से बिछड़े हुए भाई की खबर लेने जाने की तौर्व ईच्छा है। आज्ञा देने की 'कीजिये कृपा 19 से वत्स भली विचारी तुमने ! मुनि दीक्षा लिये बिना दुखों छुटकारा पाना कर्मों से मुक्त होना असम्भव है मैं सहर्ष तुम्हे मुनि दीक्षा प्रदान करता हूं। तुम्हारा कल्याण हो ! अब तुम सब विद्याओं में मंत्र मंत्र तंत्र आदि में निपुण हो गये हो ! सहर्ष जाओ। और हां यह रस ताम्बी लेते जाओ इसमें वह रस है। जिससे तांबा सोना बनाया जा सकता है। इसे अपनी तपस्या का ही फल समझो!
SR No.033223
Book TitleDharm Ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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