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________________ मेरू पर्वत के देखने से उसके समान प्रात: काल के राजभवन में बैठे हुए दोनो भाई उस महापुरूष की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि इतने में कोई महापुरूष अपने आगमन से आपके समय देखे गये || महामुनि आदिनाथ विहार करते हुए हस्तिनापुर आ पहुंचे। उनके आगमन का समाचार भवन को अलंकृत करेगा एवं बाकी के । स्वप्न शीघ्र ही सुनकर दोनों भाई दौड़े आये, उन्हें प्रणाम कर अत्यधिक आनन्दित हुए। राजा श्रेयांसने स्वप्न उन्हीं महापुरूष के गुणों की ज्यों ही भगवान आदिनाथ का दिव्य रूप देखा त्यों ही श्रीमती एवं वजजंघ भव का समस्त फल देते हैं। उन्नति बतला रहे हैं। वृतांत स्मरण हो आया। मुनियुगल को आहार दिया था। यह प्रात: काल का समय आहार देने के योग्य है। मनमाज्याण ADOBOHERO RECRel राजपुरोहित की बात सुनकर दोनो भाई बड़े प्रसन्न हुए। | उसने नवधा भक्ति पूर्वक उन्हे पड़गाहा। श्रद्धा, भक्ति से युक्त हो कर आदि । जिनेन्द्र वृषभनाथ को आहार देने के लिए भीतर ले गया। वहां उसने राजा | सोमप्रभ एवं रानी लक्ष्मीमती के साथ महामुनि आदिनाथ के पाणी पात्र में इक्षुरस से आहार दिया। जय जय अहो दानम ! अहो दानम! महामुनि आदिनाथ बीहड़ अटवियों में ध्यान लगाकर आत्म शुद्धि करते थे। उन्होंने यत्र-तत्र विहार कर अपनी चेष्टाओं से मुनि मार्ग का प्रचार किया था। वे कभी ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ की चोटियों पर ध्यान लगाकर बैठते। कभी शीतकाल की भीषण रात्रि में नदियों के तट पर आसन जमाते थे। कभी वर्षा ऋतु में वृक्षों के नीचे योगासन लगाकर बैठतेथे। पाण्णा आहार लेने के बाद महामुनि वृषभदेव वन की ओर विहार कर गये। उस युग में सबसे पहले आहर दान की प्रथा राजा श्रेयांस व सोमप्रभ ने ही चलाई थी। 30 चौबीस तीर्थकर भाग-1
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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