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________________ सम्पादकीय चित्र सुनो सुनायें तीर्थंकर जैन धर्म का एक पारिभाषिक शब्द है। जिसका भाव है, धर्म तीर्थ को चलाने वाला अथवा धर्म तीर्थ का प्रवर्तक । कभी ऐसा भी समय आता है, जब धर्म का प्रभाव क्षीण होने लगता है, उसमें शिथिलता आती है। उस समय ऐसे कथा प्रखर ऊर्जावान महापुरुष जन्म लेते हैं, जो धर्म परम्परा में आई मलिनता और विकृतियों का उन्मूलन कर धर्म के मूल स्वरुप को पुन: स्थापित करते हैं ऐसे ही जगतोद्धारक महान् उन्नायक महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं। ऐसे तीर्थकर 24 होते हैं। तीर्थकर संसाररुपी सरिता को पार करने के लिए धर्म शासन रुपी सेतु का निर्माण करते हैं। धर्म शासन के अनुष्ठान द्वारा अध्यात्मिक साधना कर जीवन को परम पवित्र और मुक्त सत्य कथाएँ बनाया जा सकता है। तीर्थंकर महापुरुष से मंडित होते हैं। जो समस्त विकारों पर विजय पा कर जिनत्व को उपलब्ध कर लेते हैं और कैवल्य प्राप्य कर निर्वाण के अधिकारी बनते हैं। आशीर्वाद - श्री वर्धमान सागर जी महाराज वर्तमान कालचक्र मे भगवान ऋषभदेव प्रथम और प्रकाशक - आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला एवं भा. अनेकान्त विद्वत परिषद भगवान महावीर अन्तिम चौबीस तीर्थकर हुए हैं। चौबीस निर्देशक - ब्र धर्मचंद शास्त्री तीर्थंकरों के घटना चक्र के बारे में चित्र कथाओं के माध्यम से कृति - चौबीस तीर्थकर भाग - 1 बाल पीढ़ी को जानकारी मिल सके इस हेतु चौबीस तीर्थंकरों सम्पादक - रेखा जैन एम. ए. अष्टापद तीर्थ को तीन भागों में पढ़ कर आत्म सात करें। तीर्थंकरत्व की - 51 उपलब्धि सहज नही है। हर एक साधक आत्म साधना कर - बने सिंह राठौड़ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, पर तीर्थंकर नहीं बन सकता। प्राप्ति स्थान, - 1. अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर तीर्थकरत्व की उपलब्धि बिरले साधकों को ही होती है। इसके 2. जैन मन्दिर गुलाब वाटिका लिए अनेकों जन्मों की साधना और कुछ विशिष्ठ भावनाएँ अपेक्षित होती हैं विश्व कल्याण की भावना से अनुप्राणित © सर्वाधिकार सुरक्षित साधक जब किसी केवलज्ञान अथवा अतु केवली के चरणों में बैठकर लोक कल्याण की सुदृढ़ भावना माता है तभी तीर्थंकर अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर जैसी क्षमता को प्रदान करने में समर्थ तीर्थकर प्रकृति नाम के विलासपुर चौक, महापुण्य कर्म का बन्ध करता है। इसके लिए सोलह कारण दिल्ली-जयपुर N.H. 8. भावनाएँ बताई गई है जो तीर्थकरत्व का कारण है पाठक गण गुड़गाँव, हरियाणा इस चित्रकथा को पढ़कर तीर्थंकरों की विशेष जानकारी प्राप्त फोन : 09466776611 09312837240 पुष्प नं. करें। जं धर्मचन्द शास्त्री अष्टापद तीर्थ जैन मंदिर मूल्य-25/- रुपये
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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